रविवार, 3 नवंबर 2013

जहाँ हुए बलिदान मुखर्जी ...


















               
         'जहाँ  हुए बलिदान  मुखर्जी ...........................' कहाँ हुए ? कुछ याद नहीं .एक बड़ी मूर्ती श्यामाप्रसाद मुखर्जी की बनाते  तो लोग कुछ चर्चा करते, कुछ याद करते कि श्याम प्रसाद मुखर्जी कैसे और कहाँ मरे थे ? लेकिन नहीं उनकी मूर्ती लगाने से वोट नहीं मिलेगी न बंगाल में जहाँ वो पैदा हुए और न कश्मीर में जहाँ वो मरे थे ,फिर वे  हमारे गुजरात के भी नहीं है जो उन्हें गुजरात  का गौरव बताया जा सके. यूँ मूर्तियां बनाने के लिए हमारे पास भी महान नेताओं की कुछ कमी  नहीं है .हमारे पास सावरकर, हेडगेवार, गोलवलकर, दीन दयाल उपाध्याय, नानाजी देशमुख ,नाथूराम गोडसे, बाल ठाकरे  जैसे कई नाम है लेकिन कोई भी गुजराती नहीं है .कोई भी ऐसा नहीं है जिसने हमारे चूतड़ों पे डंडे लगाकर हमें समझाया हो कि बेटा अगर देश में संगठन बनाकर रहना है तो भारत के संविधान का पालन करना होगा फिरकापरस्ती  नहीं फैलाओगे. सरदार पटेल ही वो महान आदमी थे जिन्होंने हमें ये सबक सिखाया. इसलिए उनकी विश्व में सबसे बड़ी प्रतिमा बनायेगें. अरे क्या हुआ जो वो कांग्रेसी थे अब कौन सा पटेल  पूछने आयेंगे कि धोखेबाजों मेरे नाम का इस्तेमाल करने वाले तुम कौन होते हो ?
    और वैसे भी अभी मूर्ती बनी कहाँ है ? हमने राम मंदिर निर्माण के लिए कितना रूपया जमा किया . मंदिर बनाया क्या ? न मंदिर बनाया न किसी को चंदे के एक रुपये का हिसाब दिया. राम सेतु के लिए हो हल्ले के अलावा क्या किया ? वैसे भी हम हो हल्ले के अलावा क्या करते हैं जो लोग इतने बिदकते  हैं ? हमारे पास ऐसी नकारात्मक राजनीति के अलावा और क्या है ? क्या हम राजनीति न करें ?          

आर एस एस और सरदार पटेल
आर एस एस द्वारा नागपुर से प्रकाशित छह खण्डों में ’’श्री गुरु जी समग्र दर्शन‘ के व्दितीय खण्ड में एक हिस्सा है : ’’संघ प्रतिबन पर्व‘। इसमें फरवरी 1948 में संघ पर प्रतिबन्ध के बाद 1949 में प्रतिबन हटाए जाने के दौर की गोलवलकर की गतिविधियों तथा सरकार के साथ उनके पत्राचार का विस्तृत ब्यौरा दिया गया है। गोलवलकर संघ पर से प्रतिबन हटाने के लिए उस समय कितनी पैंतरेबाजियाँ कर रहे थे, इसका इसमें एक चित्र मिलता है। लाख चिरौरी-मनौती के बाद भी 12 नवम्बर, 1948 को गृहमंत्रालय के तत्कालीन सचिव एच वी आर आयंगार ने जब टके सा जवाब दे दिया कि ’’प्रतिबन्ध हटा लेना सम्भव नहीं है‘, तब गोलवलकर ने अपने सभी स्वयंसेवकों के नाम संघर्ष में उतर पड़ने का ’’रणनाद‘ जारी किया जिसे वे ‘क्लेरियन काल’ कहते थे।
आर एस एस के इस थोथे रणनाद पर सरदार पटेल ने उपहास करते हुए कहा था : ’’कुछ लोग कहते हैं कि संघ सत्याग्रह करने जा रहा है। किन्तु वे लोग कभी सत्याग्रह नहीं कर सकेंगे। जिनके मन विकारों के वश में रहते हैं, उनका सत्याग्रह किसी दशा में सफल नहीं हो सकता है।‘’
               
Soumitra  Roy
गुजरात के नांदोड़ तालुके के केवड़िया में दरअसल मोदी सरदार पटेल की प्रतिमा नहीं, वहां के करीब 70 गांवों के आदिवासी किसानों की उम्‍मीदों का ताबूत बनाने जा रहे हैं। प्रतिमा तो साधु नाम के टापू पर बनेगी, लेकिन केवड़िया विकास प्राधिकरण वहां सैर सपाटे और मौज-मस्‍ती के लिए सुविधाएं विकसित करना चाहता है। इसके लिए 54 ग्राम पंचायतों के सामने जमीन देने की शर्त रखी गई है। आदिवासी बहुल इन ग्राम पंचायतों में से 29 तो संरक्षित वनों से घिरी हैं। इन पंचायतों से कहा गया है कि वे सीधे से अपनी जमीन दें वरना उनके मौन को भी सहमति मानकर जमीन छीन ली जाएगी। यही है मोदी के विकास का सपना। इसी सपने को आधार बनाकर उन्‍होंने गुजरात में विकास की ज़िद पूरी की है और राज्‍य के आदिवासी जिलों में भुखमरी और कुपोषण के भयावह आंकड़े इसके जीवंत गवाह हैं। वास्‍तव में मोदी को सरदार पटेल की प्रतिमा के लिए किसानों से लोहा नहीं, कफन का कपड़ा मांगना चाहिए। नर्मदा बांध ने मध्‍यप्रदेश में भी हजारों आदिवासी किसानों की ज़मीनें छिनी है। इन किसानों का अभी तक पुनर्वास नहीं हो सका है। अब इससे ज्‍यादा शर्मनाक बात हो ही नहीं सकती कि केवड़िया में आदिवासी किसानों की छीनी गई ज़मीन पर सब मौज-मस्‍ती करें और विस्‍थापित किसान और उनके परिवार भूखे दर-दर की ठोकरें खाएं।  
  

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