आहिस्ता चल ज़िन्दगी, अभी कई क़र्ज़ चुकाना बाकी है,
कुछ दर्द मिटाना बाकी है, कुछ फ़र्ज़ निभाना बाकी है .
रफ्तार में तेरे चलने से कुछ रूठ गए, कुछ छुट गए ;
रूठों को मनाना बाकी है, रोतो को हँसाना बाकी है .
कुछ हसरतें अभी अधूरी है, कुछ काम भी और ज़रूरी है ;
ख्वाइशें जो घुट गयी इस दिल में, उनको दफनाना बाकी है .
कुछ रिश्ते बन के टूट गए, कुछ जुड़ते जुड़ते छूट गए;
उन टूटे-छूटे रिश्तों के ज़ख्मों को मिटाना बाकी है.
तू आगे चल में आता हूँ , क्या छोड़ तुझे जी पाऊंगा ?
इन साँसों पर हक है जिनका , उनको समझाना बाकी है .-------अज्ञात
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें