गुरुवार, 21 अगस्त 2014

अथ चोर कथा

[ लो जी...एक बङा लेख, लेकिन जबर्दस्त। पढ़ के उछल न गये तो कहिएगा।]
कानी गाय, अलग बथान :- इतालो कल्विनो
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एक देश था, जहां के सारे लोग चोर थे। हर रात, चाभियों का झब्बा और लालटेन लेकर वो सभी, अपने-अपने घरों से निकलते और किसी पड़ोसी के घर में चोरी कर लेते। नियम ये था कि हर कोई अपने पड़ोस के घर में चोरी करेगा। अब जब, सुबह को वो चोरी के माल-पत्ते के साथ अपने घर लौटते तो उनके घर का सामान भी चोरी हो चुका होता था।मतलब हिसाब बराबर, रात को उनके घर से जो और जितना जाता था, वही और उतना वो किसी और के घर से चुरा ला चुके होते।
तो इस तरह उस राज्य का हर व्यक्ति मिलजुल कर खुशी-खुशी रह रहा था। किसी का कोई नुकसान नहीं होता था एक आदमी, दूसरे के घर चोरी करता था, और वह दूसरा, किसी तीसरे के घर और तीसरा, किसी चौथे के घर, इस तरह ये सिलसिला चलता रहता था, उस आखिरी व्यक्ति तक, जो वापस पहले व्यक्ति के घर में सेंध लगाता था। ये चक्र चल रहा था, और बढ़िया चल रहा था।
देश के हर तरह के कारोबार में धोखाधड़ी अनिवार्य थी, जो खरीद-बिक्री करनेवाले हर व्यक्ति पर समान लागू थी। दरअसल वहां की शासन व्यवस्था जिस संगठन के हाथ थी, आप उसे चाहे तो सरकार पुकार सकते हैं, वो अपराधियों का गिरोह था। जिसका मकसद अपने नागरिकों से चीजें हड़पना था, वो इस काम में पूरी निष्ठा से लगा था। चोरी के अलावा राज्य के लोग, हमेशा इस फिराक में रहते कि किस तरह से सरकार को चूना लगाया जाया। वो अपनी इस कोशिश में कामयाब भी होते थे। पूरे राज्य की जिंदगी ऐसे ही ठीक-ठाक चल रही थी, एक दूसरे से चोरी करते हुए। सब एक समान थे, न तो कोई अमीर था न तो कोई गरीब।
ये तो नहीं पता कि ये हुआ कैसे, पर हुआ ऐसा ही कि एक दिन कहीं से उस राज्य में एक ‘‘ईमानदार’’ आदमी रहने आ गया। सारी मुसीबत यहीं से शुरू हुई। जिस दिन वो राज्य में आया, उस रात, वो बोरा और बत्ती लेकर चोरी लिए निकला ही नहीं, घर में ही बैठा रहा। केवल बैठा ही नहीं रहा, रातभर जागकर सिगरेट धूकता हुआ, किताब पढ़ता रहा। रात को उसके घर चोर आए, लेकिन बत्ती जलती देख; वो उसके घर चोरी नहीं कर सके। चोर, चोरी नहीं कर पाए ये तो बढ़िया हुआ। आपको लगता होगा कि ये कोई बड़ी बात तो नहीं, पर एक चोर का चोरी नहीं कर पाना कितनी और कैसे गैर मामूली बात थी, अभी समझ जाएंगे आप ।
‘ईमानदार’ आदमी की मौजूदगी ने सब बदल दिया। रोजाना ऐसा ही होता कि वो ‘ईमानदार’ आदमी चोरी नहीं कर, रात में घर पर ही रहकर किताबें पढ़ता। कुछ दिन तक ऐसा ही होता रहा। तब लोगों ने एक दिन उसे आकर समझाया - “यहां चोरी ही हमारा रोजगार है, उसी से जीविका चलती है। भले ही तुम बिना कुछ किए ही गुजर बसर करना चाहते हो। लेकिन कोई दूसरा भी कुछ ना करे, तुम्हारी ये कोशिश ठीक नहीं, दूसरों को कुछ करने से रोकने का तुम्हारा कोई अधिकार नहीं। हर रात, तुम्हारे घर पर ही रहने का मतलब है कि एक चोर का, चोरी नहीं कर पाना। इस तरह तो हर दिन किसी एक परिवार के पास खाने के लिए कुछ नहीं होगा। क्योंकि तुम्हारे जगे रहने से वो तुम्हारे यहां चोरी नहीं कर पाया लेकिन उसके घर तो चोरी हो चुकी होगी।“
ईमानदार आदमी के पास इस तर्क का कोई जवाब नहीं था। लोगों का कहना तो सही था कि वो चोरी नहीं करना चाहता तो मत करे, लेकिन दूसरों को चोरी करने से रोकने का उसको कोई हक नहीं। सो तय ये हुआ कि वो रात को अपने घर पर नहीं रहेगा। वो शाम को घर से बाहर चला जाएगा और अगली सुबह को ही घर लौटेगा। वो ऐसा ही करने लगा, रात को वो नदी के पुल पर जा बैठता, सिगरेट पीता और किताबे पढ़ते पूरी रात गुजार देता, लेकिन चोरी नहीं करता। अब वो था ‘ईमानदार’ तो आप उसकी चोरी नहीं करने की आदत का कुछ नहीं कर सकते थे। पुल पर रात गुजार, जब वो सुबह अपने घर लौटता तो पाता कि वो लुट चुका है।.
ये सिलसिला एक हफ्ते तक चला, हफ्ते भर में वो ‘ईमानदार’ आदमी फक्कड़ हो गया। उसके पास एक भी पैसा नहीं बचा, खाने के लिए भी कुछ नहीं रहा। लेकिन यह कोई ख़ास बात नहीं थी उसके लिए, क्योंकि ये तो उसका ही फैसला था। असल मुसीबत ये शुरू हुई कि उसके इस रवैये से बाक़ी सारी चीजें गड़बड़ा गयी। दूसरों को तो अपना सारा सामान चुराने देने, और खुद चोरी नहीं करने का नतीजा बहुत बुरा हुआ। एक तो आप जानते हैं कि ‘‘ईमानदार’’ आदमी फक्कड़ हो गया। दूसरा ये हुआ कि हर सुबह किसी ना किसी को ये पता चलता कि उसके घर का सारा सामान सुरक्षित है, ये वही घर था, जहां उस ‘ईमानदार’ आदमी को चोरी करनी चाहिए थी।
ऐसा हुआ कि मामला बेहद गंभीर हो गया। कुछ इस तरह कि जो लोग ‘ईमानदार’ आदमी के घर में चोरी करने आते, उनके हाथ कुछ लगता ही नहीं, कि वहां चुराने के लिए कुछ होता ही नहीं, सो वो खाली हाथ लौटते, लेकिन उनके घरों में तो चोरी हो चुकी होती, सो इस तरह वो गरीब से और गरीब होने लगे। इस तरह दो वर्ग बन गया, एक जिनके घर तो चोरियां हो रहीं थी लेकिन वो कुछ चुरा नहीं पा रहे थे। दूसरा जो चुरा पा रहे थे लेकिन जिनके घर चोरियां नहीं हो रही थी।
जिन लोगों के घर तो चोरियां नहीं हो रहीं थी, लेकिन वो चोरी कर रहे थे, उन लोगों को दोहरा फायदा हो रहा था, उनका माल बचा रहता और वो दूसरो का माल चुरा लाते। नतीजा ये हुआ कि कुछ दिनों में इन लोगों ने पाया कि दूसरों के मुकाबले उनके पास ज्यादा संपति हो गई है, वो उनसे ज्यादा अमीर हो गए हैं। अब सम्पति होने से उन्हें लगने लगा कि उन्हें चोरी नहीं करना चाहिए।
हुआ ये कि इस बीच, जो लोग अमीर हो गए थे वो ‘ईमानदार’ आदमी की ही तरह पुल पर जाने और नीचे बहते हुए पानी को देखते हुए रात बिताने लगे। फिर उनकी ऐसी आदत हो गई। इससे मुसीबत और बढ़ गई कि कुछ और लोगों के घर चोरियां होनी बंद हो गई। इसका साफ नतीजा ये हुआ कि बहुत से और लोग अमीर हो गए।
अब अमीरों को लगा कि अगर वे हर रात इसी तरह पुल पर जाना जारी रखेंगे और उनके घर चोरियां होती रहा करेंगी तो जल्द ही वो गरीब हो जाएंगे। तो उन लोगों ने एक उपाय निकाला। उन्होंने कुछ ग़रीबों को पैसे पर रख लिया कि वो अमीरों के लिए चोरियां किया करें। उन गरीबों से करार किए गए और उनकी तनख्वाहें और कमीशन तय कर दिए गए। इस तरह की नई व्यवस्था के बाद भी वे थे तो चोर ही, इसलिए अब भी उन्होंने एक-दूसरे को ठगना जारी रखा था। लेकिन जैसा कि सिलसिला चल निकला था, गरीबों के घर चोरियां होती तो थी पर सामान अमीरों के घर चले जाते सो, अमीर और भी अमीर होते गए जबकि गरीब और भी गरीब।
अब कुछ अमीर इतने अमीर हो गए कि अमीर बने रहने के लिए, उन्हें चोरी करने या दूसरों से कराने की जरूरत ही नहीं रह गई। लेकिन उन्होंने चोरी बंद कर दी थी, पर गरीब तो उनके यहां चोरी कर ही रहे थे, सो खतरा था कि कहीं वो और गरीब ना बन जाएं। इसलिए ग़रीबों से अपनी जायदाद बचाने के लिए अमीरों ने सबसे गरीब लोगों को पहरेदारी के लिए पैसे देकर रखना शुरू कर दिया। इस तरह पहरेदारी और अमीरों की सहूलियत के लिए पहले पुलिस और फिर दंड और जेलखानों की स्थापना हो गई।
तो हुआ ये कि ‘ईमानदार’ आदमी के आने के कुछ ही साल बाद, लोगों ने चोरी करने और चोरी होने की बातें करना बंद कर दिया। अब वे केवल अमीर-गरीब और अमीरों-गरीबों की चर्चा किया करते थे, लेकिन दरअसल वे सब थे मूलत: चोर ही। पुलिस और जेलखानों की मदद से वो अब भी एक दूसरे को धोखा दे ही रहे हैं। अब भी उनका एक दूसरे के यहां चोरी करना जारी है।
इकलौता ‘ईमानदार’ आदमी, बस वही शुरूआत वाला ही था, जो कुछ दिनों बाद बेहद गरीबी की हालत में भूखमरी से मारा गया।
अनुवाद - आनंद के कृष्ण( K. Krishan Anand)

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