सोमवार, 8 सितंबर 2014

ईमराना प्रकरण और औलाद का सवाल

टी वी पर ईमराना प्रकरण पर बहस सुने एक से एक दानिश्वर अपनी दलीलें पेश कर रहा है जिन्हें सुनकर आपके सर में दर्द तो हो सकता है लेकिन क्या मजाल जो कुछ हल समझ में आ जाए . सब कहते हैं कि न इमराना का दोष है और न उसकी औलाद का. लेकिन ये भी मशवरा दिया जा रहा है कि इमराना अपने पति को छोड़ दे और बच्चे को यतीमखाने में पाला जाए और वहीँ उसके पिता के नाम पर काल्पनिक पिता अब्दुल्ला का नाम दिया जाए . इससे इमराना और उसके बच्चे दोनों का भविष्य सुरक्षित रहेगा. मेरी समझ से ये कोई समस्या का समाधान नहीं है कि बिना किसी कसूर के एक बच्चे को जन्म लेने से पहले ही अनाथ और अवैध बना दिया जाए और न चाहते हुए भी एक औरत अपने शौहर को छोड़ दे . टी वी एंकर इमराना से पूछती है कि क्या वो अपने शौहर को छोड़ देगी ? इमराना जबाब देती है कि आप ही इसका कोई माकूल जबाब दें कि मैं क्या करूँ ? ये सारी समस्या इसलिए उत्पन्न हो रही है कि एक पति अपनी पत्नी की औलाद को अपना नाम नहीं देना चाहता है क्यूंकि वो उसका जैविक पिता नहीं है और क़ानून उसे ऐसा करने के लिए बाध्य नहीं कर सकता है. उसे बच्चे को उसके जैविक पिता का नाम नहीं दिया जा सकता है क्यूंकि वाह उसका कानूनी पिता नहीं है .पिता का नाम न मिलने के कारण उत्तराधिकार के सवाल जिसमें पैत्रिक संपत्ति के हस्तान्तरण /नामान्तरण का प्रश्न अहम् है उत्पन्न होगा .वास्तव में यह सारी समस्या पित्रसत्तामक समाज व्यवस्था के कारण है अगर बच्चों को उनके पिता के नाम से आजाद कर दिया जाए और उन्हें केवल माता का ही नाम मिले तथा संपत्ति में स्त्री को समानाधिकार दिया जाए तो ऐसी कोई समस्या ही उत्पन्न न हो . लेकिन पिता के नाम को मिटाने जैसे बुनियादी बदलाव की मांग कौन करेगा ? सब अगर मगर में उलझे हैं और अगर मगर से कभी कोई मसाला हल नहीं होता है ,मसाले तो पैदा ही इस अगर मगर से होते हैं ,अब यही देखिएगा कि समस्या पीडिता के सामने हैं उत्पीडन करता के सामने नहीं है .न उसे अपने पिता के नाम की चिंता है न बेटे के अधिकार की. न उसे किसी से अपनी इच्छा के विरुद्ध तलाक लेना है न निकाह करना है . इद्दत का तो सवाल ही नहीं उठता है . वो जब चाहे तालाक तलाक करके किसी की खुशिया हालाक कर दे और जब चाहे हाथ पकड़कर किसी के अरमां कुचल कर रख दे. मर्दों की सोच थोडा गारा मगर करने के उसे कोई बड़ी सजा नहीं दे सकती है .

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