रविवार, 14 दिसंबर 2014

गीत


हम रेतीले टीलों पर ही
महल बनाते हैं

युगों-युगों तक बाँधा किसने
संबंध का बन्धन
कुछ ही पल को टिका माथ पर
हल्दी और चन्दन
अलग दिशा के दो बोहित
कुछ पल मिल पाते हैं
हम रेतीले टीलों पर ही महल बनाते हैं

अभी-अभी धरती दरकी, है
कानों में चटकन
इक दरिया ही उमड़ा था पर
धुलते दोनों मन
बस थोड़ी सी अड़चन में, भ्रम
क्यों पल जाते हैं
हम रेतीले टीलों पर ही महल बनाते हैं

चाँद, पोछ भीगे मुखड़े को
नैनंन रखे नेह
अभिनन्दन फिर मन-लहरों के
करते मीत सनेह
अरमानों के ढहे घरौंदे
फिर बन जाते हैं
हम रेतीले टीलों पर ही महल बनाते हैं
...........आदर्शिनी श्रीवास्तव.......
१/८१ श्रद्धापुरी फेज़-१, पंचवटी
कंकड़ खेडा मेरठ .....२५०००१

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