शनिवार, 27 दिसंबर 2014

आँखें

पर्वत, सहरा, कश्ती, दरिया तेरी आँखें हैं
धीमा-धीमा जादू गहरा तेरी आँखे हैं
एक समन्दर लहराता सा मेरी पलकों में
और उसी का दूर किनारा तेरी आँखें हैं
जो जज़्बात उठा करते हैं पानी से दिल में
सच कहना क्या उनका चश्मा तेरी आंखें हैं
तेरे दिल से मेरे दिल तक कैसे आती हैं
इन बातों का सिर्फ खुलासा तेरी आँखें हैं
रेत के कस्बे वाली लड़की सच सच कहता हूँ
झील से गहरी मेरे यारा तेरी आँखें हैं
रात के दो बजकर छत्तिस पर तुमसे कहता हूँ
पूरे दिन का सारा किस्सा तेरी आँखे हैं
------रचित दीक्षित  

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