इतिहास के सीने पर एक बहुत बड़ा बोझ है 'नाथूराम गोडसे द्वारा महात्मा गांधी की हत्या'. हत्यारों के समर्थक न तो गाँधी को महात्मा मानते हैं न उनकी हत्या को लेकर कोई अपराध भावना महसूस करते हैं इसके विपरीत वो एक प्रकार के गर्व का अनुभव करते हैं. वो गाँधी जी को हत्या को हत्या मानते ही नहीं वो तो उसे वध कहते हैं और उसे एक जरुरी कर्म कहते हैं. आज का दौर घटनाओं को पुनर्भाषित करने और इतिहास का दुरूस्तीकरण करने का है. कुछ कारनामें को दुरुस्त करने की मोहर लग गई है. अरे ओ मोती! नाथूराम गोडसे को क्लीन चिट कब मिलेगी ? क्लीन चिट ही नहीं वीर शिरोमणि भी घोषित किया जाना चाहिए ऐसा करने पर ही इतिहास की कालिख धुलेगी उससे कम पर कुछ न हो सकेगा.
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