बुधवार, 14 जनवरी 2015

ए प्यारे नबी

       लोगों का कहना है कि पैगम्बर साहब पर बहस नहीं हो सकती है. अगर इस तरह से सोचने लगे तो कोई किसी की आलोचना नहीं कर पायेगा . फिर तो जो महान है वह आदमी नहीं भगवान हो जाएगा और आम आदमी उनके जैसा बनने की कौशिश छोड़ देगा. जब किसी आदर्श आदमी की कमियों या सीमाओं का ज्ञान होता है तो फिर वह अलौकिक नहीं लगता वह अपने जैसा लगने लगता है और तब उसके जैसा बनना सहज है . हर महान आदमी को सहज सुलभ बनाने की जरुरत है .ऐसा सहज जिससे आतंकित न हों ,संकोच न हो जिससे हँसा जा सके और वक्त आने पर अपना समझकर लिपट कर रोया भी जा सके . 
हजरत मोहम्मद हो या पुरुषोत्तम श्रीराम हों हम उन्हें ऐसा ही देखना चाहते हैं .हम उन्हें पूजेंगे तो उलहाना भी देंगे. 
हजरत मोहम्मद या पुरुषोत्तम श्रीराम को अलौकिक बनाने की कौशिश न करें और जो अलौकिक नहीं हैं इहलौकिक है उन पर कार्टून भी बनेगें और उन पर कविताएँ भी लिखी जायेगीं .जब ए प्यारे नबी कहकर उनका गुणगान किया जाता है तब किसी की आस्था को चोट नहीं लगती है लेकिन कार्टून बनाते ही आस्था भड़क जाती है .ऐसा हमें स्वीकार नहीं है .

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें