बुधवार, 28 जनवरी 2015

नदी के जल जनित रोगों से होता नारकीय जीवन -------- लेखक: संजीव कुमार


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नदी के जल जनित रोगों से होता नारकीय जीवन
लेखक: संजीव कुमार
कृष्णी नदी गांव के पूर्व दिशा में बहती है। जब हवा चलती है तो नदी के सड़े हुए पानी से सांस लेना भी दूभर हो जाता है। यह नदी गांव के लिए मच्छर बनाने की फैक्ट्री बन चुकी है। भूगर्भ जल कुछ समय बाद ही पीला हो जाता है। महिलाओं के गहने काले पड़ जाते हैं। इस गांव के लड़के शादी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं। अन्य गांव के लोग इस गांव में अपनी लड़कियों की शादी नहीं करते। गांव के लोगों का अधिकांश धन स्वच्छ पानी के लिए व बिमारियों के लिए खर्च करते हैं। गांव वालों ने शासन एवं प्रशासन स्तर पर नदी के किनारे लगे उद्योगों को हटाने के लिए काफी प्रयास किये। लेकिन कोई सुखद परिणाम नहीं निकला।आज भारत सहित दुनिया के अधिकतर देशों में जल प्रदूषण एक गंभीर समस्या बना हुआ है। यह प्रदूषण सतह पर बहने वाले पानी तथा भूजल दोनों में समान रूप से फैल रहा है। जिसका कारण औद्योगिक विकास तथा बदलती जीवन शैली है। प्रदूषित होता जल मानव समाज के साथ-साथ पूरे वातावरण को भी दूषित कर रहा है। स्वच्छ पानी पीना मनुष्य का मानवाधिकार है। परन्तु मानवाधिकारों का हनन किस प्रकार हो रहा है यह हिण्डन नदी के किनारे बसे गाँवों में आसानी से देखा जा सकता है। हिण्डन व उसकी सहायक नदियों के ऊपर गहन शोध कार्य किया गया था। इस दौरान पहले तो हिण्डन व उसकी सहायक नदियों में बहने वाले पानी का परीक्षण कराया गया तथा उसके पश्चात इन नदियों के किनारों के बारह गांवों का स्वास्थ्य संबंधी अध्ययन किया गया तथा आठ गांवों के भूजल का परिक्षण भी कराया गया।
हिण्डन की सहायक नदियाँ काली तथा कृष्णी जो ननौता से शुरू होतीं हैं। कृष्णी नदी के पास बसा गाँव भनेड़ा खेमचन्द है जिसमें गन्ना मिल व शराब फैक्ट्री का गन्दा पानी आकर मिलता है। इस नाले के पानी में लेड की मात्रा 0.12 तथा क्रोमियम की मात्रा 3.50 मिग्रा.ली. पाई गई थी। कृष्णी नदी ननौता, थानाभवन, सिक्का व रमाला के करीब आधा दर्जन उद्योगों का बहिस्रावित प्रदूषित पानी लेकर बरनावा में आकर हिण्डन में मिल जाती है। जिससे कृष्णी नदी के किनारे बसे लगभग 86 गाँवों का भूजल पूरी तरह से प्रदूषित हो चुका है। इस पानी को पीने से विभिन्न प्रकार की बीमारियाँ जैसे- एनीमिया, मुँह में जलन, मरोड़, उल्टी, पेट में दर्द, लकवा, मानसिक रोग, फेफड़ों का कैंसर व खून की कमी आदि।
गाँव के प्रधान तथा गाँव के एकमात्र डाक्टर सतपाल सिंह ने टीम को बताया कि गाँव को बीमारियों ने इस प्रकार से घेरा है कि वह खुद प्रतिदिन लगभग 110 मरीजों का इलाज करते हैं, इसके अलावा कुछ मरीज गाँव से बाहर भी इलाज कराते हैं जबकि गाँव की कुल आबादी लगभग 3500 की है। गांव के लोग बताते है कि यह वह नदी है जिसमें सिक्का डाल देने पर वह पानी में चमकता था। इस नदी में मानव व पशु पानी पीते एवं नहाते थे। पवित्र अवसरो व त्यौहारों पर नदी का पूजन किया जाता था। यह नदी गांव के लोगो के लिए फसलों में सोना पैदा करती थी। गांव के बच्चे नदी में अठखेलियां किया करते थे। बुजुर्ग लोग इस नदी के किनारे पर लगे वृक्षों के नीचे हुक्का भरकर विभिन्न मुद्दों पर चौपाल लगाते थे। लेकिन अब स्थिति खतरनाक हो चुकी है। यह नदी गांव के पूर्व दिशा में बहती है। जब हवा चलती है तो नदी के सड़े हुए पानी से सांस लेना भी दूभर हो जाता है।
भनेड़ा खेमचन्द गांव के पास कृष्णी नदी में गिरता उद्योगों का गंदा पानीयह नदी गांव के लिए मच्छर बनाने की फैक्ट्री बन चुकी है। भूगर्भ जल कुछ समय बाद ही पीला हो जाता है। महिलाओं के गहने काले पड़ जाते हैं। इस गांव के लड़के शादी के लिए भी मोहताज हो चुके हैं। अन्य गांव के लोग इस गांव में अपनी लड़कियों की शादी नहीं करते। गांव के लोगों का अधिकांश धन स्वच्छ पानी के लिए व बिमारियों के लिए खर्च करते हैं। गांव वालों ने शासन एवं प्रशासन स्तर पर नदी के किनारे लगे उद्योगों को हटाने के लिए काफी प्रयास किये। लेकिन कोई सुखद परिणाम नहीं निकला। गांव के लोगों ने एक बाबाजी के नेतृत्व में काफी आंदोलन, धरना-प्रदर्शन किये बाद में बाबा जी भी उद्योगों से पैसा लेकर चम्पत हो गये। विभिन्न समाजसेवी संगठन भी आये लेकिन सब निर्रथक रहा। नदियों में प्रदूषण का बढ़ना जहां एक गंभीर समस्या है वहीं इस प्रदूषण के कारण लोगों का स्वच्छ पेयजल से वंचित होना उनके मानवाधिकारों का हनन है। जिसके जिम्मेवार एक तरफ उद्योग तथा दूसरी ओर सरकारी तंत्र है। लोग स्वच्छ पेयजल के अभाव में दम तोड़ें यह एक अपराध तथा मानवाधिकारों के हनन की एक जीती जागती तस्वीर है।

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