रविवार, 8 फ़रवरी 2015

'रावण रथी विरथ रघुवीरा'


अब कमल के फूल मुरझाने लगे हैं
ये किरण चुभती बहुत रौशन नहीं है .
                  भारत की राजनीति में स्वयं को विकल्प के तौर पर तोलने और बोलने वाले विविध जनता दल, समाजवादी परिवार,तीसरा मोर्चा,वाम मोर्चा,बसपा, सपा सब दिल्ली चुनाव के मैदान से गायब हैं.सारी लड़ाई नवजात 'आप' को लड़नी पड़ रही है.और लड़ाई 'रावण रथी विरथ रघुवीरा' वाली है. ये लड़ाई साबित करेगी की जीत संसाधनो से नहीं इच्छा शक्ति से होती है .अगर आप सत्पथ पर हैं ,अगर आपमें लड़ने का साहस है तो जीत भी आप की ही होगी.बोल सिया राम चन्द्र की जय .
           देखने की बात ये है कि इमाम बुखारी ने समर्थन तो 'आप' को दिया है लेकिन मतदान भाजपा के पक्ष में क्यों बढ़ गया है ? किसने कहा था कि हर क्रिया की एक प्रतिक्रिया होती है ? अब प्रतिक्रियावादी खामोश थोड़ा ही रहेंगे ? वो प्रतिक्रिया करेंगें .ये उनका प्रतिक्रिया धर्म है.बरखुरदार इमाम साहब अगर आप खामोश रहते तो आप का क्या बिगड़ जाता ? आपकी इमामत तो कोई छीनने जा नहीं रहा था ?और आपको अपनी इमामत से ज्यादा और किसी चीज कि चिंता ही क्या हो सकती है ? पता नहीं कब आपका ये बकरे जैसा मुँह बंद होगा और कब आपके मुरीद आपकी कब्र पर फातिहा पढ़ेंगे. आपकी कब्र पर अगरबत्तियों का पूरा गोदाम जलाना पड़ेगा .जो हवा तुम्हारे पास से आती है उसमें बहुत बदबू आती है .
      दिल्ली के लोग कोई नासमझ तो है नहीं जो वो नसीब के ऊपर यकीन करके बैठे रहते उन्होंने जब देखा कि जो विकास का वायदा करके गए थे वो अपने नसीब पर इतरा रहे हैं और हमें बदनसीब ठहरा रहे हैं तो वो इस तरह ठगे जाने पर बुरी तरह बिगड़ गए .उन्होंने कहा कि अगर तुम हमारे वोट की ताकत को अपने नसीब से कमतर समझते हो तो हम अपना नसीब अपने आप लिखेंगे. हमें तुम्हारे नसीब के भरोसे नहीं रहना है. अब उन्होंने अपने आप को पहचान लिया है आम आदमी की ताकत को जान लिया है अब वो किसी के नसीब के आसरे नहीं रहेंगे .
      हम भी खाँसते रहते तो आज ये हाल न होता लेकिन हमने दहाड़ने की कौशिश की और हमारा गला ही बैठ गया. खाँसना तो दूर अब तो आवाज ही नहीं निकल रही है.लगता है. बदनसीब वाली बात दिल्ली वाले दिल पर ले बैठे तभी तो दिल्ली दीदी की नहीं दिलवालो की हो गयी .अपने को वापिस अन्ना के आश्रम राले गण सिद्धि जाना पड़ेगा, दिल्ली में अपने लिए कोई ठीक ठाक जगह मिलनी मुश्किल है .

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