शनिवार, 21 मार्च 2015

जला डालो तास्सुब से भरी सारी किताबों को


यह तस्वीर २७ साला जहनी बीमारी से ग्रस्त  फर्खुन्दा की है जिसे काबुल में अल्लाह हो अकबर नारे लगाती भीड़ ने पहले पत्थर मार मार कर पस्त कर दिया फिर उसे जला दिया गया
 दैनिक हिन्दुस्तान दिनॉंक (मेरठः21 मार्च2015 पेज संख्या 14) पर प्रकाशित दो खबरों पर गौर फरमायें जिन्होंने मुझे काफी कुछ सोचने को विवश किया है।
  पहली खबर नाईजीरिया से है जहॉं बोकोहरम के लडाकों द्वारा नाईजीरिया में अगवा कर जबरन पत्नि बनायी गयी अनेक महिलाओं को मार दिया गया है। लडाकों ने इस डर से उन्हें मार डाला कि उनके मरने के बाद वे दूसरों से शादी रचा सकती हैं। इन महिलाओं की हत्या उत्तरी पूर्वी इलाके के बामा शहर में सेना के साथ बोको हरम की भिडंत से पहले की गई है। प्रत्यक्षदर्शियों ने बताया कि बोको हरम के लडाकों को डर था कि वे सेना से लडाई में मारे जायेंगें या अपनी पत्नियों से बिछड जायेंगे और उनकी पत्नियॉं भाग जायेंगी जिनसे सैनिक या काफिर शादी कर सकते हैं।
   दूसरी खबर अफगानिस्तान से है जहॉं राजधानी काबुल में एक उग्र भीड ने एक महिला को जिन्दा जला दिया। उस महिला पर कुरान को जलाने का आरोप है। महिला के परिजनों ने उसे विक्षिप्त बताया है।
   प्रत्यक्षदर्शियों के मुताबिक काबुल स्थित लोकप्रिय धार्मिक स्थल शाह दो शमशीरा के पास गुरूवार को भीड ने महिला को घेर लिया। पुलिस ने हवाई फाईरिंग कर महिला को बचाने का प्रयास किया लेकिन भीड धार्मिक स्थल की दीवारों पर चढ गई और नारे लगाने लगी कि महिला को मार देना चाहिये।
  भीड ने लाठी डण्डों से महिला पर हमला बोल दिया और उसे पीट पीट कर अधमरा कर दिया फिर उसे आग के हवाले कर दिया गया जिससे उसकी दर्दनाक मौत हो गई।
    .इन दोनो खबरों को ध्यान से क्रमशः पढें और फिर सोचें कि औरतों पर इतना जुल्म क्यों हो रहा है? ये जुल्म वे लोग कर रहे हैं जो सारी दुनियॉं में इस्लामी हुकुमत कायम करना चाहते हैं और जिनकी निगाह  में इस्लाम के सच्चे मानने वाले वही लोग हैं और केवल उनके रास्ते पर चलकर ही लोग   दोनो जहॉं में महफूज रह सकते हैं।
क्या वास्तव में यही सच्चा इस्लाम है? ऐसे धार्मिक लोग जो औरतो को इन्सान नहीं जिन्स समझते हैं उनके धार्मिक विश्वाशों को ना मानने वाली औरत पागल कैसे हो सकती है? पागल तो वो सारे लोग हैं जो औरतों पर जुल्म कर रहें हैं। चिन्ता की बात ये है कि ये वो धार्मिक पागल हैं जो चाहते हैं कि समाज उनके हॉंके गये रास्ते पर चले। ये पागलपन सदैव से चिन्ता का विषय रहा है क्यूॅंकि धार्मिक पागलपन सबसे खतरनाक होता है और इसे भारत के लोगो ने सन सैंतालिस से लेकर सन दो हजार दो तक बहुत नजदीक से देखा और भुगता है। इस धार्मिक पागलपन के देश काल के हिसाब से रंग ढंग अलग अलग जरूर हैं लेकिन असर एक जैसा ही होता है। इसका सबसे बडा असर समाज में दूसरे धार्मिक समुदाय में जबाबी धार्मिक पागलपन का फैलना है जिसके परिणाम स्वरूप सामाजिक कटुता और अविश्वाश पैदा होता है औरतों और बच्चों पर सकंट आता है और अन्तः राष्ट्र का अस्तित्व खतरे में पड जाता है। आईये हम सब मिलकर पागलपन के इस संक्रमण को रोकें और औरतों और बच्चों की हिफाजत करें ।


0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें