रविवार, 8 मार्च 2015

क़ानून का राज -मसरत आलम और सैयद फरीद खान


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'मसरत पर 2008 से 2010 के बीच पत्थरवाजी के आतंक की साजिश रचने का अरोप लगाया था और जम्मू-कश्मीर पुलिस ने 10 लाख का इनाम भी घोषित किया था। उसे 2010 में श्रीनगर के बाहरी इलाके से गिरफ्तार किया था। पत्थरवाजी ने आतंक का एक अलग चेहरा प्रस्तुत किया था जिसमें सुरक्षा बालों के जवान सहित 100 से ज्यादा लोग मारे गए थे एवं कश्मीर में एक बड़ उबाल दिख रहा था। केन्द्र और प्रदश सरकार उसे रोकने में नाकामयाब रही थी।
लेकिन आपको जानकर आश्चर्य होगा कि पुलिस ने उस पर कोई केस दर्ज ही नहीं किया। वह बिना किसी आपराधिक मुकदमे के, आरोप के केवल पब्लिक सेफ्टी एक्ट के तहत जेल में था। अगर किसी पर कोई मुकदमा है ही नही तो फिर आप उसे जेल में कैसे रख सकते हैं? उस पर मुकदमा दर्ज होना चाहिए था।'
                                                                                                   ----------- (अवधेशकुमार)

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'सोशल मीडिया पर एक तस्वीर वायरल हो रही है जिसमें एक शख्स का निर्वस्त्र शव एक टॉवर पर लटका है और वहां पर मौजूद लोग मोबाईल से उसकी वीडियो बना रहे हैं। खबर को पढ़ने पर पता चलता है कि यह मामला नागालैंड के दीमापुर का है। जिस व्यक्ति का यह शव है उसका नाम सैय्यद शरीफुद्दीन है और वह असम के करीमगंज का रहने वाला है उस पर कथित तौर से आरोप था कि उसने किसी लड़की के साथ बलात्कार किया है, दूसरा ‘देशद्रोही’ आरोप यह था कि वह बंग्लादेश का रहने वाला है और गैरकानूनी रूप से भारत में रह रहा है। बंग्लादेशी होने का आरोप नागा काउंसिल का है दोनों ही आरोप गंभीर हैं। मगर क्या सच वही है जो दिखाया जा रहा है ? जिसे सोशल मीडिया पर शेयर किया जा रहा है, शायद नहीं मृतक के भाई के अनुसार तो बिल्कुल भी नहीं। बंग्लादेशी होने का आरोप तो यहीं खारिज हो जाता है कि शरीफुद्दीन खान के भाई ईमामुद्दीन खान सेना में थे, और 1999 की करगिल लड़ाई में शहीद हो गए थे। अब सवाल बचता है बलात्कार का क्या शरीफुद्दीन ने बलात्कार किया भी था अथवा नहीं ? मैडिकिल रिपोर्ट के अनुसार उस युवती के साथ बलात्कार हुआ ही नहीं बल्कि उसे फंसाया गया था। अब वह युवती खुद कह रही है कि उसे इस घटना के बाद चुप रहने के लिये रुपयों की पेशकश की गई थी। जिस भीड़ ने शरीफुद्दीन को पीट – पीट कर मारा डाला आखिर उसका नेतृत्व कोई तो कर रहा होगा ? किसके इशार पर यह भीड़ यहां इकट्ठा हुई थी ? वे लोग कौन थे जिन्होंने 2000 लोगों की भीड़ को इस हत्या करने के लिये उकसाया ? जिस लड़की ने बलात्कार का आरोप लगाया था डॉक्टरी रिपोर्ट में उसके साथ बलात्कार हुआ ही नहीं फिर पुलिस ने अपनी कस्टडी से एक व्यक्ति को भीड़ के हाथों इतनी आसानी से क्यों सोंप दिया ? जब हजारों की भीड़ एक व्यक्ति को मार रही थी, उसके कपड़े उतारकर उस पर वार कर रही थी और फिर मारकर उसको टॉवर पर टांग रही थी तब पुलिस क्या कर रही थी ? सवाल तो यह भी पैदा होता है कि क्या पुलिस भी इस सारे ‘खेल’ में खामोश रहकर उन हत्यारों का समर्थन कर रही थी जिन्होंने यह साबित होने से पहले ही मार दिया कि उसने बलात्कार किया भी नहीं था ? अक्सर इस देश में महिलाओं की तरफ से बलात्कार के फर्जी मामले किसी को फंसाने के लिये दर्ज कराये जाते रहे हैं। फिर अदालत के फैसले का इंतजार क्यों नहीं किया गया ? क्यों कानून को ताक पर रखकर पुलिस की मौजूदगी में एक वय्क्ति की हत्या कर दी गई ? यह देश और समाज दोनों के लिये अच्छा संकेत नहीं है। इन सारे सवालो के जवाब तलाशना जरूरी है। उस पर भी तुर्रा यह कि कि वह बंग्लादेशी और अवैध रूप से भारत में रह रहा था। यह कैसा अजीब कुतर्क है ? क्या बंग्लादेशी होना इस बात का प्रमाण होता है कि बंग्लादेशी है तो वह बलात्कारी होगा ? बलात्कार करने और बंग्लादेशी होने के आरोप उस वक्त खारिज हो जाते हैं जब मैडिकल रिपोर्ट में बलात्कार की पुष्टी नहीं होती और मृतक शरीफुद्दीन का परिवार का संबंध सेना से पाया जाता है। 1999 के कारगिल युद्ध में शरीफुद्दी के भाई इमामुद्दीन शहीद हुऐ थे, शरीफुद्दीन के भाई कमाल खान इस वक्त भारतीय सेना की असम रेजिमेंट में हैं। उनके पिता, सैयद हुसैन खान, भारतीय वायु सेना से रिटायर हुए थे और मां अभी उनकी पेंशन ले रही हैं। मगर ऐसी बेहिसी का आलम है कि जिस परिवार ने इस देश के लिये कुर्बानियां दीं उसके ही सदस्य को बंग्लादेशी और बलात्कारी बताकर मार दिया जाता है, और ऊपर से नागा काउंसिल के महासचिव जोएल नागा कानून की धज्जियां उड़ाने के बाद यह कहते नजर आते हैं 'असम सरकार की वोट बैंक पॉलिसी से हम गुस्से में हैं। सिर्फ 50 रुपए खर्च कर कोई भी भारत की नागरिकता हासिल कर सकता है और यहां नौकरी भी शुरू कर सकता है। हम खान को अवैध बांग्लादेशी के रूप में ही देखते हैं, भले ही उसके पास डॉक्युमेंट्री प्रूफ क्यों न हों।' यह नजरिया इस देश को फांसीवाद के रास्ते पर ले जा रहा है। क्या गोगा को इतनी भी जानकारी नहीं कि 50 रुपये खर्च करके नागरिकता प्रमाण पत्र तो बनवाया जा सकता है मगर उस प्रमाण को कैसे मिटाया जायेगा जिसमें शरीफुद्दीन का भाई कारगिल का शहीद है ? देश पर जान देने का ऐसा खामियाजा शायद ही किसी परिवार ने भुगता हो जैसा शरीफुद्दीन के परिवार को भुगतना पड़ा है। बेहतर हो कि उस युवति जिसने बलात्कार का फर्जी आरोप लगाया उसके खिलाफ कार्वाई की जाये उस भीड़ के खिलाफ भी कार्वाई की जाये जो इस तमाशे को अपने मोबाईल में कैद कर रही थी। किसी भी अपराध की सज कानून तय करता है खापनुमा संगठन और उनके लोग नहीं।'------------- वसीम  अकरम   त्यागी
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मुफ़्ती सरकार ने उस व्यक्ति को जेल से रिहा कर दिया जो बिना किसी आरोप के जेल में बंद था अब लोग बिलबिलाएं हैं कि एक आतंकवादी को रिहा क्यों कर दिया ?
उधर नागालैंड में सैयद फरीद खान नाम के एक शख्श को बलात्कारी होने के आरोप में उग्र भीड़ ने जेल से खींचकर मार डाला .लोग फिर सवाल कर रहे हैं कि ऐसा क्यों किया गया ?
एक जगह आप आरोपी को अपराधी मान लेते हो और चाहते हो की वह सजा भुगते दूसरे को आप अपराध साबित होने तक सुरक्षित देखना चाहते हो .यह कैसी मानसिकता है जो वक्त और माहौल देखकर बदलती रहती है ?
मेरी समझ से मुफ़्ती सरकार ने मसरत को रिहा कर सही काम किया है और नागालैंड की जनता द्वारा सैयद फरीद खान को मार देना गलत काम है .क़ानून का राज है क़ानून के अनुसार फैसला होना चाहिए .जनता हो या सरकार भावनाओं के आधार पर कोई काम नहीं किया जाना चाहिए . कोई दोषी है तो क़ानून के अनुसार सजा भुगते और अगर निर्दोष है या संदिग्ध है तो आजाद हो .
एक और मजे की बात देखिये कि रिहा होते ही कथित आतंकी मसरत ने फरमाया है कि उसे कुछ फर्क नहीं पड़ा है वह छोटी जेल से बड़ी जेल में आया है.
श्रीमान नागालैंड होता तो तुम्हें पता चल जाता की बड़ी जेल कैसी होती है ? मानवाधिकारों का सम्मान करना सरकारों या सुरक्षा बालों का ही काम नहीं है कुछ नागरिकों की भी जिम्मेदारी बनती है. श्रीमान मसरत आलम आप जिम्मेदारी नहीं निभा रहे हो .अच्छा होता अगर आप मुफ़्ती सरकार का धन्यवाद अदा करते और कहते कि सरकार जेलों में बंद बाकी निर्दोष कश्मीरियों को भी रिहा कर दे .--------------- अमरनाथ मधुर 

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