सोमवार, 30 मार्च 2015

प्रभुता पाय काहे मद नाहीं




किसी पार्टी को चनाव में प्रचन्ड बहुमत से जिता देना उस पार्टी के नेता को तानाशाह बना सकता है और जनता को पॉंच साल के लिये असहाय। इसलिये जनतंत्र में एक सशक्त विपक्ष का होना बहुत जरूरी है। वैसे जब प्रभावी विपक्ष नहीं होता है तो सत्ता पक्ष में से कुछ समूह दबाव ग्रुप के रूप में काम करने लगते हैं जिसे सत्ता पर काबिज लोग गुटबाजी कहते हैं लेकिन स्वस्थ लोकतंत्र के लिये ऐसा होना जरूरी है। भारत के प्रथम प्रधान मंत्री नेहरू के समय में भी विपक्ष सशक्त नहीं था लेकिन लोकतांत्रिक मिजाज के नेहरू ने विपक्ष और अपनी पार्टी के भी विरोधी विचार वाले नेताओं को पूरी तव्वजों दी आज के नेताओं की तरह नहीं जो अहंकार में इतने डूबे हैं कि या तो विरोधी विचारों को बलपूर्वक दबा देते हैं या अनसुना कर देते हैं। साले कमीने बोलकर आम आदमी के पिछवाडे लात मारने वाले नेता स्वराज पाकर अपनी औकात भूल गये हैं लेकिन आम आदमी उनकी इस हरकत को कभी माफ करने वाला नहीं है। इन्हें शायद  पता नहीं है कि सदैव ऐसा वक्त रहने वाला नहीं है वक्त बदलेगा और जब वक्त बदलेगा तो ताज औ तख्त कहॉं गये कुछ पता नहीं चलेगा।

       लोग खामखॉं बिना बात का बतंगड बना रहें हैं उन्होंने हमें कमीन ही तो कहा है कोई गाली तो नहीं दी है ? हम तो जी जन्म से ही कमीन हैं। कमाकर कर खाते हैं इसलिये कमीन हैं। हॉं गाली तो तब होती जब वो हमें हरामखोर कहते। लेकिन वो ऐसा कह नहीं सकते थे क्योंकि उन्हें अच्छी तरह पता है कि हमने अपनी जिन्दगी भर की कमाई इस पार्टी को खडी करने में लगाई है। हम कमीन हैं,कमेरे हैं, हवा हवाई हरामखोर नहीं है।    और वो साला ? वो तो बड़ा करीब का रिश्ता है जीअपने घर में साले को जरा कुछ बोलकर दिखायें आपको बोरिया बिस्तर घर से बाहर ना मिले तो फिर हमसे बात करना।

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