मंगलवार, 21 अप्रैल 2015

ये धरती बलिदानों की, अगली सरकार किसानों की------2

आप गूगल सर्च कर सकते हैं। राहुल गाँधी की स्पीच के दौरान नायडू खड़ा हो के बोला पप्पू जी बैठ जाइये। दो तीन बार बोला पप्पू जी बैठ जाइए।
 जी हाँ पप्पू को बैठ ही जाना चाहिए था ताकि लोग गप्पू की गप्प सुनकर अच्छे दिनों के ख्वाब देख सकें. लेकिन अब बहुत सारे लोग जाग चुकें हैं और उन्होंने जागने पर खूब आँख मलकर देख लिया किन्तु  उन्हें   अच्छे  दिन दूर  दूर  तक भी कहीं नजर नहीं आ रहे   हैं . जहाँ  तक भी  नजर जाती है खेतों में बर्बाद फसल नजर आती है या किसानों  के मुरझाये चेहरे नजर आते हैं. किसानों के इससे  बुरे दिन कभी नहीं  आये थे जब एक ओर वह कुदरत का कहर झेल रहा है तथा दूसरी ओर सरकार भूमाफियाओं  की तरह उसकी जमीन हड़पने पर आमादा है .ऐसे में वह आत्महत्या न करे तो  क्या करे ? क्यूँकि उसके काँधें पर चढ़कर राजनीति करने को तो सब आगे हैं लेकिन उसकी जिंदगी बचाने को कोई आगे नहीं आ रहा है. अब भी आप कहते हैं कि अच्छे दिन आ गए  तो  फिर ये  भी बता  दें  कि किसान  और मजूर के इससे खराब दिन कब थे ?    
ये मत भूलना कि जनता पप्पू बरदाश्त कर सकती है लेकिन गप्पू ज्यादा दिन तक बरदाश्त करने वाली नहीं है .जनता  काम  चाहती हैं उसने गप्प  सुनाने के लिए आपको केंद्र  में नहीं भेजा है.    

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