शनिवार, 25 अप्रैल 2015

कभी मौसमों ने रुला दिया - बल्ली सिंह चीमा

कभी धान को कभी गेहूं को तेरी मंडियों ने दगा दिया
मेरी खेतियों से तुझे बैर है, तेरी नीतियों ने बता दिया.

मैं किसान हूँ, मेरा हाल क्या, मैं तो आसमां की दया पे हूँ
कभी मौसमों ने हंसा दिया , कभी मौसमों ने रुला दिया.

ये कहानियाँ ये लफ़्फ़्फ़ाजिया तेरे मुँह से मझको जँची नही
मेरे गांव का ये रिवाज है कहा जो भी करके दिखा दिया.

मेरा खून जब भी बहेगा,तू अपनी सियासत में रहेगा
जी लू मै भी एक पल,इस लिए जान को गँवा दिया .

किसान हू तो क्या है ग़म,मै खाली हाथ चल पड़ा
मिला नही मेरे बच्चों को कुछ तो,भूखा उन को सुला दिया.

मेरे आंसुओं का हिसाब तू,लेना मेरे ऐ ख़ुदा
वो चैन से सोते रहे,हमें मार कर सुला दिया.

किसान हू,फितरत में मेरी,जो दो रोटिया मिली मुझे
एक खुद ही खा लिया,एक पडोसी को खिला दिया।
                     - बल्ली सिंह चीमा

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