सोमवार, 13 अप्रैल 2015

कुछ कच्ची मिटटी से चेहरे


.मुझे लुभाते रहते हैं क्यूॅं कुछ कच्ची मिटटी से चेहरे ?

वो मिटटी जो लोच लिये है,हर सूरत में ढल जाने को
हर मूरत का कद गढने को हर गैरत का तल पाने को
वही लोच तो दिखती इनमें,नहीं सोच के दिखते पहरे।
मुझे लुभाते रहते हैं क्यूॅं कुछ कच्ची मिटटी से चेहरे ?

अनुबन्धों के सख्त दहाने बने भुरभुरे सब टूटेंगे
सम्बन्धों की ओर खींचते अब सारे बंधन छूटेंगे
उडते नई हवाओं के संग,किसी ठौर पर अभी ना ठहरे।
मुझे लुभाते रहते हैं क्यूॅं कुछ कच्ची मिटटी से चेहरे ?

एक सोंधापन, उल्लासी मन, मुस्काता गाता सा जीवन
इन्हें देख कर क्यूॅं खुश ना हांे पाये ना फिर अपना यौवन
अभी हवायें धूल भरी है पेशानी पर भी बल ठहरे ।
मुझे लुभाते रहते हैं क्यूॅं कुछ कच्ची मिटटी से चेहरे ?

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