बुधवार, 8 अप्रैल 2015

ये धरती बलिदानों की, अगली सरकार किसानों की

               

      बात जमीन के मुआवजे  की हो या फसल चोपट होने पर मिलने वाले मुआवजे की जब भी किसाान के नुकसान की भरपाई के लिये आवाज उठायी जाती है तुरन्त मजदूर को उसके सामने खडा कर दिया जाता है और सवाल किया जाता हे कि मजदूर को क्या मिलेगा ? अब कोई पूछे कि क्या किसाान ने कभी कहा है कि मजदूर को कुछ न दिया जाये? क्या कहीं ऐसा हुआ है कि किसान की फसल को मौसम या बाजार ने नुकसान पहुॅंचाया हो और खेत मजदूर ने अपनी मजदूरी छोड दी हो या कम मजदूरी ली हो ? आज जब मौसम की मार से खेत में गेहूॅं की फसल आधी तिहाई ही बची है कोई खेत मजदूर फसल कटाई की मजदूरी कम नहीं लेगा। आज जब आलू की बम्पर पैदावार हुई है जिसके कारण मण्डियों में आलू का कोई खरीददार नहीं है, कोल्ड स्टोर में आलू रखने के लिये जगह नहीं मिल रही है आलू सडकों पर पडा है किसी मजदूर ने आलू की खुदाई, भराई की मजदूरी कम नहीं ली है। गन्ना उत्पादक किसान बरसों से गन्ने का भुगतान ना मिलने से परेशान है कोई खेत मजदूर नही है जिसने अपनी मजदूरी ना ली हो। 
        अगर खेत मजदूर भी किसान की तरह परेशान होते तो जिस प्रकार आये दिन किसानों द्वाारा आत्महत्या की जा रही है एकाध खेत मजदूर के भी आत्महत्या करने का समाचार जरूर मिलता लेकिन ऐसा नही है । मेरा कहने का मतलब यह नहीं है कि किसान आत्महत्या कर रहा है तो मजदूर भी आत्महत्या करें। किसान तो चाहता है कि मजदूर क्या व्यापारी भी फलंे फूले, खुशहाल रहे लेकिन इतना तो हो कि कम से कम किसान भी बदहाल तो ना हो। लेकिन किसान के दम पर फलने फूलने वाले नेता,कारोबारी,अधिकारी सब किसान राग गाते गाते खेत किसान को खाते जा रहे है। कई सरकारें आई और गई लेकिन किसानों की बेहतरी के नाम पर उन्होंने अपनी सियासत चमकाने के अलावा कुछ नहीं किया है। किसानों को अनुदान  के नाम पर जो देना बताया जाता है वह बैंक,खाद, बीज, दवा और मशीनरी निर्माता को फायदा पहुॅंचाया जाता है। अनुदान की व्यवस्था इसलिये है ताकि फर्टीलाईजर, कीट नाशक दवाई और खेती की मशीनरी बनाने वाली कम्पनियॉं और बैंक का मुनफा बना रहे, वे कही बन्द ना हो जायें। किसान के हिस्से में कर्ज, भूख और मौत के अलवा कुछ नहीं आता है। सही मायनों में मेहनतकश किसानों की सरकार ही मेहनतकशों को उसका हक दिला सकती है किसाानों के नाम पर राजनीति करने वाले कारोबारी किसानों का भला नहीं कर सकते हैं। इसलिये किसानों को जागना होगा, अपने दुश्मनों को पहचानना होगा और अपने दुश्मन को पहचान कर उसे नापना भी होगा।
          किसानों उठो मुटठी बॉंधों और एक नये इन्कलाब के लिये आवाज बुलन्द करो- ये धरती बलिदानों की, अगली सरकार किसानों की     

                                                                                      - अमरनाथ 'मधुर'

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