बुधवार, 15 अप्रैल 2015

फेंकने की आदत

उसे बचपन से फेंकने की आदत थी जब पालने में था तो दूध की बोतल फेंका करता था . कुछ बड़ा हुआ तो बेड से खिलौने और तकिया फेंकने लगा. स्कूल पढने गया तो सहपाठियों की किताबें कापियाँ उठाकर फेंकने लगा . स्कूल से बाहर आकर गुल्ली डंडा खेलता. उसकी सदैव यही कौशिश रहती कि उसकी गुल्ली सबसे दूर जाये. उसकी इस प्रतिभा को शाखा पे बैठने वालों ने दूर से ही परख लिया .उन्होंने कहा कि तुम सुबह को शाखा पे आया करो हम वहाँ दूर की फेंकने की ट्रेनिंग देते हैं .हमारी ट्रेनिंग पाया हुआ कभी पकड़ में नहीं आता है .
अगले दिन वो सुबह सवेरे शाखा पे पहुँच गया .उसने देखा कि वहाँ कुछ लडके 'हर हर महादेव' का जयकारा बोलते और 'मैं जियाजी' कहकर भागते .जो कोई भागता बाकी उसके पीछे उसे पकड़ने को दौड़ पड़ते .उसने सोचा ये तो कहते थे कि फेंकने की ट्रेनिंग देंगे लेकिन यहाँ तो पकड़ने की ट्रेनिंग दी जा रही है . वह वापिस लौटने ही वाला था कि उसे किसी ने आवाज दी अरे फेंकू कहाँ जाता है ? इधर आ देख तुझे कितना मजा आएगा .
वह वापिस लौट आया .वहाँ रहकर उसने जाना की 'मैं जियाजी' कहकर भागना मतलब कि दूसरों को परेशान करना है ताकि दूसरे खेलने वालों का ध्यान भटक जाए और खुद जीत जायें. ऐसे ऐसे भटकाने अटकाने वाले कई खेल उसने वहाँ सीख लिए जो उसके बाद के जीवन में बहुत काम आये . 
    खेल के बाद में बौद्धिक प्रशिक्षण होता जिसमें लम्बी फेंकने और अफवाहें फैलाने का प्रशिक्षण दिया जाता.जिस में उसने महारथ हासिल कर ली .फेंकने में उसकी प्रवीणता देखकर शाखा वालों ने उसे राजनीति में फेंकने के लिए भेज दिया क्यूंकि वहाँ लम्बी फेकने वाले की सख्त जरुरत थी .
राजनीति में आकर जो इसने फेंकना शुरू किया तो वह अपने गुरु से भी आगे निकल गया .उसकी कलाबाजी देखकर गुरु भी हैरत में पड़ गए .उन्होंने बहुत कौशिश की कि उसकी फेंकने की रप्तार थोड़ा कम हो जाए .लेकिन वो बिलकुल कम न हुई .उसको फेंकने को रोकने के चक्कर में गुरु की स्वयं की धोती गीली हो गयी और नेकर नीचे खिसक गया .जब तक वो अपना नेकर धोती संभालते तब तक वो बेशर्म दाँत दिखाता हुआ बहुत आगे जा चुका था .
  गुरु अपना मन मसोस कर बैठ गए.अब फेंकू फेंक फेंक कर पूरे देश की बाउंड्री छू रहा था .देश के लोग उसके तमाशे को चमत्कार समझकर नमस्कार कर रहे थे .जब तक उन्हें इस तमाशे और चमत्कार की असलियत समझ में आती तब तक वो देश से उड़न छू हो गया . लोग इंतज़ार करने लगे कि कब वो लौटकर आये और कब उससे लम्बी लम्बी फेकने का हिसाब मांगे . लेकिन वो था कि एक देश से दूसरे देश उड़ता रहा और वहीँ से बड़ी बड़ी बातें फेंकता रहा कि वो जनता के लिए ये ला रहा है वो जनता के लिए वो ला रहा है .देश के लोग कुलमुलाने लगे कि ये वो की छोड़ ये बता कि हमारे हिस्से के पंद्रह लाख ला रहा है कि नहीं जो तूने हमें देने का वायदा किया था ?
लेकिन उनकी बात का सुनने को कोई तैयार नहीं था . बाकी सभी शाखा वाले मुँह और कान पर हाथ धरे बैठे थे .बहुत कोंचने पर एक धीरे से फुसफुसाया हमें मरवाओगे क्या ? हम कुछ न बतायेंगे कि तुम्हारे पंद्रह लाख रुपये आएंगे की नहीं आएंगे . हमें बोलने के लिए मना किया हुआ है. बोलने का काम सिर्फ उनका है. हमारा काम है चुपचाप सुनते रहना सो सुन रहे हैं. इसी में में हमारा भला है .तुम भी खैरियत  चाहते हो तो चुपचाप सुनो . लोग एक दूसरे का मुंह ताकने लगे कि ये क्या कह रहा है  हमने तो समझ था अच्छे दिन आ गए हैं लेकिन इतने अच्छे दिन आएंगे ये न सोचा था कि बोलने पर भी पाबंदी होगी .
देश के लोग बड़े भोले थे चुपचाप सुनने लगे. हालांकि अब उनका सुनने में कुछ ख़ास मन नहीं लगता था. लेकिन चुपचाप सुनने के अलावा उनके पास और कोई रास्ता भी न था. किन्तु राजधानी के लोग कुछ ज्यादा ही पढ़े लिखे थे. वो ऐसे चुपचाप सुनते हुए इंतज़ार करने  को तैयार नहीं थे .क्योंकि वो जानते थे कि  जिन्दा कौमें इंतज़ार नहीं करती हैं. उन्होंने हंगामा कर दिया .वो बोले हमें पंद्रह पंद्रह लाख दो और अभी दो हम और इंतज़ार नहीं करेंगे .
फेकू को पता लगा तो वो तुरंत वापिस राजधानी लौट आया और जोर से चिल्लाया ये जो शौर मचा रहे हैं ये सब के सब नक्सली हैं, इन्हें जंगल में भेज दो .लेकिन लोगों ने उसकी बात पर कान न दिया .अब उन्हें उससे भी बड़ा फेंकने वाला मिल चुका था .उन्होंने उसे अपना नेता चुन लिया और उसके साथ स्वराज लेने चल पड़े. 
फेकू ने यह देखा तो वो सहम कर खामोश हो गया .लेकिन फेंकने की आदत तो उसे बचपन से थी.अब जो आदत बचपन से हो वो दबाये से दबती भी नहीं है . वो रह रह कर उभरती रहती .इसलिए  खामोश बैठना उसके लिए बहुत मुश्किल हो रहा था .उसकी जीभ खुजाने लगती. कुछ दिन उसने जैसे तैसे अपनई जीभ  पर काबू रखा फिर कुछ दिनों के बाद उसने थोड़ा थोड़ा फिर फेंकना शुरू कर दिया .लेकिन अब उसे अपनी बाउंड्री के अंदर फेंकने में कुछ मजा नहीं आ रहा था .वो फेंकता लेकिन लोग देख कर भी अनदेखा कर देते, सुन कर भी अनसुना कर देते .इसलिए वो बाहर फेंकने के लिए निकल पड़ा .
सुना है आजकल वो दुनिया की बाउंड्री नाप रहा है .ये भी सूना है कि कुछ पालतू पत्थरमार पट्ठे भी अपने साथ ले गया है जो उसके फेंकना शुरू करते ही शौर मचाने लगते हैं कि वो देखो वो फेंका सीधा बाउंड्री के पार गया है. वो देखो वो मारा छक्का अबकी हमांरा मैच जीतना पंक्का. लोग हॅंसते कि  अरे बेवकूफों अभी तो मैच शुरू भी नहीं हुआ है. अभी से क्यूॅं बन्दरों की तरह उछल कूद रहे हो? उन्हें हँसता देख कर पत्थरमार अपनी जेब में रखे पत्थर को मारने के लिए टटोलने लगते लेकिन फिर अपने इलाके से बाहर होने का ध्यान आते ही  डरकर चुपचाप बैठ जाते और सोचते कि जब अपने इलाके में पहुँच जायेगें  तब इन्हें खूब जोर से पत्थर फेंककर मारेंगे.
इधर जनता है कि ओलों से पिटे अपने सिर को पकड़े बैठी है. पंद्रह लाख मिलने की बात वो कभी का भूल चुकी है.अब तो उसे खाने के गेहूं के लाले पड़े हैं उसे फ़िक्र है कि कल रोटी कैसे मिलेगी अनाज तो सारा बेमौसम की बारिश ने बरबाद कर दिया है ? 
अगर सबका पेट फेंकने की किसी जुगत से भर सकता हो तो मुझे भी बताना फेंकने वालों को ना सही लेकिन मुझे भूख बहुत सताती है।

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