मंगलवार, 11 अगस्त 2015

नदियों में बाढ और काली नदी

. बरसात का मौसम है। नदियों उफान पर हैं। कई जगह से बाढ से तबाही के समाचार आ रहे हैं। फसलें नष्ट हो रहीं हैं। आदमी और पशुओं के बह जाने की भी घटनायें हो रहीं हैं। वैसे कुल मिलाकर काफी अच्छी बारिश हो रही है लेकिन इस सबके बावजूद काली नदी समेत ऐसी कई नदियॉं हैं जिनमें बहुत कम पानी है। ये नदियॉं अभी भी पहले से अटी पडी गन्दगी से जूझ रहीं हैं। लगतार हो रही बारिश और नदियों में आ रही भारी बाढ का जैसे इन पर कोई असर ही नहीं है। क्या ही अच्छा होता कि बाढ के पानी से उफनती नदियों का कुछ जल काली नदी जैसी नदियों को मिल जाता तो दम तोडती इन नदियों को भी जीवनदान मिल जाता और इस नदी के किनारे रहने वाले लोगों के जीवन में भी खुशहाली लौट आती। अभी तो इस नदी के विषाक्त जल के कारण लोगों का जीवन दूभर हो गया है। यहॉं के लोगों की अनेक बीमारियों के लिये इस नदी का विशाक्त जल ही जिम्मेदार है जो कि वास्तव में जल नहीं अनेक कारखानों से निस्तारित रासायनिक विष हैं। इस समस्या को कारखाने से निष्कासित रासायनिक विष मिश्रित प्रदूषित जल का शुद्धिकरण करने के साथ साथ अन्य नदी से जल लाकर किया जा सकता है। आजकल गंगा में काफी पानी है। गंगा नदी के जल को आसानी से काली नदी में जोडा जा सकता है।
. नदी जोडों योजना बनाने की घोषणा तो कई बार हुई है लेकिन जमीन पर कुछ काम हुआ नहीं है। अब इस काम में देरी करना उचित नहीं है। ये काम जितनी जल्दी शुरू कर दिया जायेगा उतना अच्छा होगा।



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