बुधवार, 12 अगस्त 2015

धर्म निरपेक्ष सरकार और कॉंवड का चलन

खबर है कि परतापुर(मेरठ) में  कॉंवडियों के एक शिविर से  नृत्य कर रही एक भोली (शिव भक्तिन) को तीन स्कूटर सवार नौजवान उठा ले गये। उधर झारखण्ड में दर्शनार्थी कई शिवभक्तों के भीड में कुचलकर मरने का समाचार हैं। कॉंवडियों के  दुघर्टना, झगडे में घायल होने के समाचार तो आम हैं। शिवभक्तों की सुरक्षा और शान्ति व्यवस्था को लेकर पुलिस प्रशासन के हाथ पॉंव फूले हैं। जनता में आक्रोश है कि सरकार शिवभक्तों की सुरक्षा के अच्छा प्रबन्ध क्यूॅं नहीं करती है? उसका ये भी कहना है कि हज यात्रियों के लिये तो हज हाउस बनाये जाते हैं जबकि हाजियों  से कई गुना शिवभक्तों कॉंवडियों के आराम और सुरक्षा के लिये कुछ नहीं किया जाता है। एक विधायक महोदय ने तो कॉंवड मार्ग पर अपनी विधायक निधि से कॉंवड हाउस बनाने की घोषणा भी कर दी है। ऐसे में सरकार पर जन दबाव बहुत है।
स्पष्ट है कि धर्म निरपेक्ष सरकार जन दबाव में जनता को धार्मिक सहूलियतें देने के लिये वो सब करेगी जो भक्त लोग चाहते हैं। फिर भी आप पायेंगें कि सरकार के अरबों रूपये खर्च करने के बावजूद भक्तों की शिकायतें जस की तस हैं। लौग भगदड में, दुघर्टना में घायल होंगे, लापता होंगे। क्यूॅंकि मामला 'मैं तुझसे मिलने आयी मन्दिर जाने के बहाने' जैसा भी रहता है। वरना आस्था और भक्ति का इस दिखावे और  ताम झााम से क्या लेना देना है ? कहते हैं कि कॉंवड का चलन श्रवण कुमार द्वारा आपने माता पिता को बंहगी में बिठाकर तीर्थयात्रा कराने से है। आज के कॉंवडियों में श्रवण कुमार जैसे मातृ पितृ भक्त मुश्किल से ही ढूॅंढने पर मिलेगें । फिर भी कॉंवड यात्रा जारी है और साल दर साल बढती ही जाती है। बीस तीस साल पहले कॉंवडियों की संख्या बहुत कम हुआ करती थी तब कोई समस्या भी नहीं थी। आज गंगा किनारे से लेकर शहर की सडकों तक समस्या ही समस्या है और ये समस्या इन कॉंवड भक्तों के कारण है। मजे की बात ये है कि हर कोई इस समस्या के लिये सरकार को कोसने में लगा है। कोई भी इन कॉंवडियों को सदाचर और संयम का पाठ पढाने के लिये तैयार नहीं है। सरकार भी अगली बार पुख्ता इन्तजाम करने का संकल्प लेती रहती है, एक बार भी इस अनियंत्रित भीड को हतोत्साहित करने के बारे में नहीं सोचती है। एक धर्म निरपेक्ष सरकार को चाहिये कि वह धर्म के ढकोसले की पोल खोलने के लिये अभियान चलाये ना कि ढकोसलेबाजों की सुरक्षा में मुस्तैद रहे। लेकिन हो ये रहा है कि धर्म और आस्था की आड में तमाम तरह के असामाजिक काम करने वाले सरकार के मेहमान बने हैं और शान्ति प्रिय आम नागरिक सडक पर चलने तक के अपने संवैधानिक हक से महरूम है। इस धर्म निरपेक्ष देश में जितनी वैध अवैध सुविधा कथित धार्मिक लोगों को प्राप्त है उसका शतॉंश भी धर्म निरपेक्ष लोगों को प्राप्त नहीं है। वे हमेशा इन कथित धार्मिक लोगों से सहमे सहमे से रहते हैं।  

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