गुरुवार, 13 अगस्त 2015

अपनी चुप्पी पे भी इल्जाम बहुत सारे हैं

अपनी चुप्पी पे भी इल्जाम बहुत सारे हैं।
हमने कब किससे कहा इश्क हम मारे हैं।

वो तो तुम थे जो हमें देते रहे नाम नये
वरना गुमनाम थे अब नाम बहुत प्यारे हैं।

कोई आवारा कहे, कोई कहे दीवाना
लौग पत्थर हमें पागल की तरह मारे हैं।

हमने आवाज उठायी है बदल दो ये जहॉं
जिस जगह मीरा औ सुकरात बहुत सारे हैं।

हम पियें जहर भला किसलिये खायें पत्थर
हम पे दो बाजू हैं उस पे क्या कई सारे हैं?

एक हो जायेंगें जिस रोज सभी दीवाने
देखना दिन में ही जालिम को दिखें तारे हैं।

0 टिप्पणियाँ:

एक टिप्पणी भेजें