रविवार, 16 अगस्त 2015

जिस देश के सैनिक सडकों पर, उस देश की आजादी कब तक?'

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दिल्ली में रिटायर्ड फौजी वन रैंक वन पेन्षन की अपनी बरसों पुरानी मॉंग को लेकर धरना दे रहे हैं। ये वो बहादुर सैनिक हैं जिन्होंने हमारे देश की रक्षा के लिये अनेक बार सरहद पर शत्रुओं को शिकस्त दी है। विडम्बना देखिये आज उन्हें अपनी मॉंगों के लिये अपनी सरकार से भी लडना पड रहा है। सरकार है कि इन वीर सैनिकों को सम्मान देने के बजाये उन पर लाठीचार्ज कर रही है। पुलिस ने लाठीचार्ज करते समय ये भी ध्यान नहीं रखा कि अस्सी अस्सी साल के ये बूढे बहादुर शेर अपनी सरकार होने के कारण शान्ति से अपना हक मॉंग रहे हैं वरना ये हक छीन भी सकते हैं।पुलिस का कहना है कि पन्द्रह अगस्त के कारण सुरक्षा की दृष्टि से इन्हें यहॉं से हटाना जरूरी है। पुलिस ने अपने सर्वज्ञात पुलसिया अन्दाज से न सिर्फ सैनिकों को पीटा बल्कि कई के कपउे फाड डाले, उनके मेडल तक नोच लिये। इससे तीन दिन पहले जय किसान आन्दोलन के बैनर तले योगेन्द्र यादव की अगुवाई में धरना दे रहे किसानों को पुलिस केन्द्र सरकार के आदेश से इसी प्रकार बलपूर्वक हटा चुकी है। जिस देश में किसानों और सैनिकों को अपनी मॉंग मनवाने के लिये धरने पर बैठना पडता हो और सरकार उनसे सम्मान से पेश आने की बजाये लाठी डन्डों से बात करती हो क्या उस सरकार को हम अपनी सरकार कह सकते हैं ? क्या ऐसी आजादी को हम आजादी कह सकते हैं जिसमें किसानों और जवानों के हक की बात सुनने वाला कोई ना हो? अगर ये देश किसनों और जवानों का नहीं है तो फिर किसका है ?हर मुददे पर लिखने की जरूरत नहीं होनी चाहिये कुछ मुददे बिना लिखे भी समझ में आते हैं। जिस सरकार को किसानों और सैनिकों से असुरक्षा नजर आती हो उस सरकार को कोई नहीं बचा सकता है।


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