पॉंव धरती पे जिसका टिके ही नहीं
वक्त पर जो सदन में दिखे ही नहीं
चुप रहे, बोल दे तो रूके ही नहीं
ऐसे मक्कार को
सुल्फिया यार को
मैं नहीं जानता
मैं नहीं मानता।
नाग व्यापम का अपना कसे पाश है
बेईमानों की सत्ता बनी खास है
ऐसे में न्याय की ना कहीं आश है
आ गये अच्छे दिन
आ गये सच्चे दिन
मैं नहीं मानता ।
मैं नहीं मानता।
काले धन की रकम मिल रही, तुम कहो
दाम फसलों के कम है नहीं, तुम कहो
कर्ज में देंगे दम अब नहीं, तुम कहो
ऐसे अच्छे हैं दिन
ऐसे सच्चे हैं दिन
मैं नहीं मानता।
मैं नहीं मानता।
सरहदें आज भी हैं रंगी खून से
कोई डरता नहीं सख्त कानून से
भूखी बेवा बहादुर की दो जून से
ऐसे इन्साफ को
बेतुकी खाफ को
मैं नहीं मानता।
मैं नहीं मानता।
जिसने सदियों से चूँसा है अपना लहू
तुम वही हो, वही हो मैं क्यों ना कहूॅं
जब तक मौजूद तुम हमको कैसा सुकूॅं
हम ना मानेंगे अब
हम बदल देंगें सब
मैं नहीं मानता ।
मैं नहीं मानता।
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शनिवार 19 दिसम्बर 2015 को लिंक की जाएगी ....
जवाब देंहटाएंhttp://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ....धन्यवाद!