शुक्रवार, 1 जनवरी 2016

उम्र हमारी पचपन की है ,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .


उम्र हमारी पचपन की है,पर इच्छाएं बचपन सी हैं
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .
मन करता है चाँद को छू लूँ
मस्त घटाओं के संग झूलूँ .

उम्र हमारी पचपन की है ,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .


तितली के पर मुझे लुभाते
कोयल के स्वर मुझे बुलाते .
पेड़ों की ऊँची शाखा पर
बैठे बन्दर मुझे चिढ़ाते .

मन करता है पेड़ पे चढ़ के
खो खो करके मैं भी खेलूँ .
उम्र हमारी पचपन की है ,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .

एक सायकिल का पहिया ले
दौड़ पड़ूँगा खुली सड़क पर
कौन रहेगा हम से आगे
मैं बोलूंंगा  खूब अकड़ कर .

दौडूँगा  यूँ आँख मूँदकर
चाहे घर की गालियां भूलूँ .
उम्र हमारी पचपन की है,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .

अपनी मंडली खूब जमेगी
भरी दुपहरी नीम के नीचे
रामलीला वाली लीलायें
हम खेलेगें ऊपर नीचे

क्या तुम राम बनोगे साथी  
जो मैं दशरथ बनकर रो लूँ ?
उम्र हमारी पचपन की है,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .


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