उम्र हमारी पचपन की है,पर इच्छाएं बचपन सी हैं
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .
मन करता है चाँद को छू लूँ
मस्त घटाओं के संग झूलूँ .
उम्र हमारी पचपन की है ,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .
तितली के पर मुझे लुभाते
कोयल के स्वर मुझे बुलाते .
पेड़ों की ऊँची शाखा पर
बैठे बन्दर मुझे चिढ़ाते .
मन करता है पेड़ पे चढ़ के
खो खो करके मैं भी खेलूँ .
उम्र हमारी पचपन की है ,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .
एक सायकिल का पहिया ले
दौड़ पड़ूँगा खुली सड़क पर
कौन रहेगा हम से आगे
मैं बोलूंंगा खूब अकड़ कर .
दौडूँगा यूँ आँख मूँदकर
चाहे घर की गालियां भूलूँ .
उम्र हमारी पचपन की है,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .
अपनी मंडली खूब जमेगी
भरी दुपहरी नीम के नीचे
रामलीला वाली लीलायें
हम खेलेगें ऊपर नीचे
क्या तुम राम बनोगे साथी
जो मैं दशरथ बनकर रो लूँ ?
उम्र हमारी पचपन की है,पर इच्छाएं बचपन सी हैं .
कैंसे इच्छायें पूरी हों, मन में रहती उलझन सी है .
0 टिप्पणियाँ:
एक टिप्पणी भेजें