जिनकी कविता का रिश्ता है सिर्फ गुलाबी गालों से
मदमाती बाँकी चितवन से,बहकी बहकी चालों से .
वो मेरी कविता पर हँसते, मेरा नाम पूछते हैं
जिनका नहीं वास्ता कोई उलझे हुए सवालों से .
आसमान में उड़ने वालों को धरती पर लाता हूँ .
उन्हें आईना दिखलाता हूँ, अपना नाम बताता हूँ
जो जमीन से जुड़ा अभी वो तृण पात हूँ मैं
मेरा नाम पूछने वालों 'अमरनाथ ' हूँ मैं .
मेरा नाम पूछने वालों जाल बुनों मत बातों का
मुझको राग नहीं भाता है,महकी बहकी रातों का
मैं खाते पीते लोगों के मनोरंजन की चीज नहीं
ध्यान मुझे रहता है हर दम खाली पड़ी परातों का
मैं कविता में भूखे नंगों का दुःख दर्द सुनाता हूँ
बलवानों से दले गये जो उनका साथ निभाता हूँ
जिनके कोई साथ नहीं है उनके साथ हूँ मैं.
मेरा नाम पूछने वालों 'अमरनाथ ' हूँ मैं .
'मधुर ' उन्हीं के लिए हूँ मैं, जो दिल के सच्चे हैं
निश्छल जिनकी हंसी, भाव भी जिनके अच्छे हैं
'मधुर ' नहीं, 'माहुर ' हूँ मैं उन सब शैतानों का
जिनकी बातों में हेरा फेरी के लच्छे हैं .
आस्तीन के साँपों की औकात दिखाता हूँ.
जो छुप छुप के वार करें उनसे टकराता हूँ
बढ़ बढ़ कर बकने वालों पर वज्रपात हूँ मैं
मेरा नाम पूछने वालों 'अमरनाथ ' हूँ' मैं .
--------- अमरनाथ 'मधुर'
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