शुक्रवार, 5 अगस्त 2016

वक्त ही वक्त है

नफरतों के लिए वक्त ही वक्त है
क्या करें अपनी किस्मत ही कमबख्त है .

हम से हंस बोल कर कोई भी ना मिला
आँख अंगार सी,लफ्ज भी सख्त है .

टकटकी बांधकर इश्क तकता रहा
हुस्न मगरूर खुद में हुआ मस्त है.

जंग खुद ही लड़ी हमने ताउम्र है
सर पे साया नहीं,ना कोई दस्त है .







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