मंगलवार, 1 नवंबर 2016

बोला शहीद के बेटे ने


बोला शहीद के बेटे ने
मत रो माँ पापा हैं शहीद
क्या हुआ जो काले सन्नाटे में
गयी दीवाली आज बीत .

चुप हो जा उनको सोने दे
ये वक्त नहीं है रोने का
आता ही होगा जल्दी ही
सरकारी मैडल सोने का.

तू देख गर्व से ऊँचा है
मस्तक अपने नेताओं का
अब रंग जमा समझो उनकी
सब फीकी पड़ी सभाओं का.

बलिदानी वीरों के शव पर
वोटों का गिद्ध लपकता है.
जैसे ही उसका मुँह खुलता
जिह्वा से लहू टपकता है .

गीदड़ से करते हुंआ हुंआ
भक्तों का झुण्ड उमड़ता हैं
शव नोच नोच खाने वाले
कुत्तों की तरह झगड़ता है .

ऐलान किया जाता है फिर
ऐसा ही सबक सिखायेगें .
दुश्मन को घुसकर मारेंगे
या हम लड़कर मर जायेगें .

माँ मुझे बड़ा हो जाने दे
दुश्मन को मैं भी देखूँगा .
किसलिए मरे और मारे हम
उससे पूछूँगा, सोचूँगा.

हर रोज मारने मरने की
हर वजह ख़त्म हम कर देंगे
आँखों से आँसू पोंछेंगे
खुशियों से दामन भर देंगे .

मुर्दा जिस्मों पर तमगों की
ना लड़ी सजाई जायेगी
मरने वालों की क़ुरबानी
ना बड़ी बताई जायेगी.

ना बात बहादुर चहकेंगें
खुद अपनी खैर मनायेगें.
अपनी सूरत चमकाने को
ना यूँ ही बैर बढ़ायेगें .

हम बादल,पानी,पंछी से
सरहद से आये जायेगें
गलबाहें होकर नाचेगें
खेलें, कूदेंगे, गायेगें .

मुठभेड़ों में मारे जाना
कानून नहीं, दस्तूर नहीं .
गर ऐसा है कानून कोई
हरगिज हम को मंजूर नहीं .

बस मुझे बड़ा हो जाने दो
खुद पाँव खड़ा हो जाने दो
इन जंग खोर नेताओं को
उनकी औकात बताने दो .

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