सब विकास के दावे हवा हवाई हैं
धुंध एक गहरी मौसम में छायी है
लोकतंत्र के पथ पर चौकस हो चलना
इधर कुआ तो उधर भी गहरी खाई है.
जब तक जुमले सच मानेगें ताली पीट रहे मतदाता
धर्म ज़ात को देख चुनेंगे जब तक अपना भाग्य विधाता
तब तक दूर नहीं हो सकती ये बेकारी, भूख, गरीबी
न कोई बेटा खुश होगा, न कोई खुश होगी माता .
किसी के भी कंधे पर खड़ा होना नहीं सीखा ,
सहारों से कभी हमने बड़ा होना नहीं सीखा.
भले ही धूल हों पथ की छुवेगें आसमानों को
नगीना बन के पत्थर का जड़ा होना नहीं सीखा .
सुबह आती है शाम आती है
नींद न शब् तमाम आती है.
धुंध एक गहरी मौसम में छायी है
लोकतंत्र के पथ पर चौकस हो चलना
इधर कुआ तो उधर भी गहरी खाई है.
जब तक जुमले सच मानेगें ताली पीट रहे मतदाता
धर्म ज़ात को देख चुनेंगे जब तक अपना भाग्य विधाता
तब तक दूर नहीं हो सकती ये बेकारी, भूख, गरीबी
न कोई बेटा खुश होगा, न कोई खुश होगी माता .
किसी के भी कंधे पर खड़ा होना नहीं सीखा ,
सहारों से कभी हमने बड़ा होना नहीं सीखा.
भले ही धूल हों पथ की छुवेगें आसमानों को
नगीना बन के पत्थर का जड़ा होना नहीं सीखा .
सुबह आती है शाम आती है
नींद न शब् तमाम आती है.
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