रविवार, 5 फ़रवरी 2017

सब विकास के दावे हवा हवाई हैं 
धुंध एक गहरी मौसम में छायी है 
लोकतंत्र के पथ पर चौकस हो चलना 
इधर कुआ तो उधर भी गहरी खाई है.



जब तक जुमले सच मानेगें ताली पीट रहे मतदाता
धर्म ज़ात को देख चुनेंगे जब तक अपना भाग्य विधाता 
तब तक दूर नहीं हो सकती ये बेकारी, भूख, गरीबी 
न कोई बेटा खुश होगा, न कोई खुश होगी माता .


किसी के भी कंधे पर खड़ा होना नहीं सीखा ,

सहारों से कभी हमने बड़ा होना नहीं सीखा.
भले ही धूल हों पथ की छुवेगें आसमानों को 
नगीना बन के पत्थर का जड़ा होना नहीं सीखा .






सुबह आती है शाम आती है 
 नींद न शब् तमाम आती है.

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