मंगलवार, 11 अप्रैल 2017

सलाम मुर्तजा भाई

         घर से बाहर गए हुए बहुत दिन हो गए थे. मन रूटीन के कामों से बहुत उबा हुआ, थका हुआ था सोचा कहीं घूम आते हैं.लेकिन कोई साथ जाने वाला न था अकेले जाने पर  बोरियत महसूस होती फिर भी अकेला ही घर से निकल लिया .घर से बस स्टैंड तक तय नहीं था कि कहाँ जाना है .बस मन था कि जाना है .रोडवेज बस स्टेंड पर एक बस के कन्डक्टर ने हरिद्वार ऋषिकेश की आवाज लगाई तो कदम खुद ब खुद बस की ओर बढ़ चले .बस में सीट पर आकर बैठे और सोचा गर्मी का मौसम है चलो ऋषिकेश चलते हैं .यूँ ऋषिकेश, लक्ष्मण झूला अपना सब पहले से काफी देखा हुआ है लेकिन मौसम को देखते हुए वहाँ जाने का ये सही चुनाव था .
       लक्षमण झूला जाने पर वहाँ मन नहीं लगा. कई बार आना जाना हो चुका था अबकी बार यूँ भी अकेले था इसलिए वहाँ नहीं रुका. कुछ दूरी  पर नीलकंठ था इसलिए सोचा वहीँ हो आया जाए . नीलकंठ जाने के लिए प्राईवेट टैक्सियाँ थी .एक टैक्सी में एक सवारी की सीट खाली मिली उसमें बैठ गया .टैक्सी फर्राटा भरते हुए नीलकंठ के लिए चल पड़ी .
कुछ ही देर में नीलकंठ पहुँच गए .ड्राईवर ने कहा सब लोग दो घंटें में नीलकंठ महादेव के दर्शन करके आ जाना मैं यहीं पार्किंग में गाडी के अन्दर मिलूँगा .
  अपनी देवी देवताओं में कोई आस्था नहीं है लेकिन दर्शनीय स्थानों को जानने समझने की ललक रहती है .नीलकंठ महादेव के मंदिर को देखने के लिए मैं भी भक्त जनों के पीछे चल दिया .मंदिर  से बाहर जूते निकाले ओर अन्दर नीलकंठ महादेव के दर्शन के लिए घुस गया .अन्दर जाने पर पाया कि शिव मूर्ति वहाँ से बहुत दूर है .अन्दर बहुत लम्बी लाइन लगी थी .लाइन में खड़े होकर धक्के खाकर मूर्ति के दर्शन करना मुझे कुछ तर्क सगत नहीं लगा .मैं मंदिर से बाहर निकला आया और सड़क पर टहलने लगा .
 सड़क के एक तरफ ऊंचा पहाड़ था और दूसरी तरफ गहरी घटी थी जिसमें सीढ़ीदार खेत बने थे . नीचे कुछ मकान  भी दिखाई दे रहे थे . दूर कहीं पर धान औसाता किसान परिवार नजर आ रहा था . 
  अपने पास समय की कुछ कमी ना थी लेकिन वहाँ घूमने अथवा देखने के लिए कोई जगह भी नहीं थी .पार्किंग के पास के टिन सेड में बैठे बैठे जब बोर हो गया तो सोचा कि किसी धर्मशाला में रुकने का कमरा तलाशा जाए .एक दो धर्मशाला में पूछ ताछ की. किसी ने भी अकेले आदमी को कमरा देने के लिए हाँ नहीं की. कारण पूछने पर बताया गया कि अकेले आदमी को कमरा नहीं दिया जाता है चाहो तो कामन हाल में लेट जाओ .
 वापिस ऋषिकेश आने पर भी यही समस्या सामने आई .होटल वाले भी अकेले आदमी को कमरा देने को तैयार नहीं हुए. जबकि कई आई डी प्रूफ मेरे पास थी .अब ये ऐसी समस्या थी जिसका तत्काल कोई समाधान मेरे पास ना था .थक  हार कर हरिद्वार आने का फैसला किया. मुझे उम्मीद थी वहाँ कोई न कोई कमरा जरूर मिल जाएगा .
 हरिद्वार में आते आते रात के नौ बज गए .मोती बाजार में जाकर कई धर्मशालाओ में कमरा के लिए पूछ ताछ की. एक दो धर्मशाला वाले कमरा देने को तैयार हुए. कमरा देखे  और एक धर्मशाला में जाकर कमरा ले लिया .
रात आराम से सोये और सुबह नौ बजे धर्मशाला छोड़कर गंगाजी पर हर की पैडी पर आ गए .दो तीन घंटें तक हर की पैडी पर इधर से उधर टहलते रहे .गंगा तट का नजारा वैसा ही था जैसा हमेशा होता है . लोग आ जा रहे थे और गंगाजी में स्नान कर रहे थे . किनारे पर खोमचे वाले ,फूल वाले ,प्रसाद वाले ,माला आदि बेचने वाले,खाना खिलाने वाले  मतलब कि छोटे छोटे कारोबार वाले अपना काम धंधा कर रहे थे .
    एक पुल के पास कई हज्जाम अपनी दुकान लगाये थे . मैं  घाट पर यूँ ही टहल रहा था हज्जाम खाली बैठे बतिया रहे थे .मुझे अपनी  तरफ देखते हुए देखकर एक ने आवाज दी आओ बाबूजी बाल कटवा लो .
मैनें कहा नहीं मुझे बाल नहीं कटवाने हैं.
हज्जाम बोला कटवा लो बाबूजी नहाने से पहले बाल कटवाना ठीक रहेगा ,बस तीस रुपये लगेंगे .
मैंने कहा तीस नहीं मैं बीस में बाल कटवाता हूँ .
 हज्जाम बोला बाबूजी पच्चीस दे देना .
मैंने कहा नहीं मैं बीस ही देता हूँ .वैसे भी अभी मुझे बाल कटवाने  नहीं हैं .
 हज्जाम बोला  आ जाओ बाबूजी बीस ही दे देना ,कुछ काम धंधा नहीं है खाली बैठे हैं .
मैंने कहा चलो भाई जब तुम कहते हो तो कटवाये लेते हैं.
मैं कुर्सी पर बाल कटाने के लिए बैठ गया .
हज्जाम ने फ़टाफ़ट अपने औजार निकाले और बाल काटने शुरू कर दिए .
बाल काटते हुए वो बोला बाबूजी कहाँ से आये हो ?
मैंने कहा भाई मैं तो मेरठ से आया हूँ .
वो बोला तभी तो कम पैसे दे रहे हो .मेरठ का आदमी बहुत सयाना होता है .पैसे देना ही नहीं चाहता है .
मैंने कहा नहीं भाई ऐसी बात नहीं है .हमारे यहाँ बाल बनवाने का यही रेट है .
 हज्जाम  बोला ये बात नहीं है जी .आप लोग बड़े सयाने हो .मजदूर को मजदूरी नहीं देना जानते हो लेकिन ये बताओ सयाने तो तुम बहुत बनते हो फिर तुमने भाजपा को वोट क्यूँ दी ? अखिलेश ने तो कितना बढ़िया काम किया था .सबको पेंशन दी .मकान दिए .उसे वोट क्यूँ नहीं दी ?
मैंने कहा भाई मैंने वोट नहीं दी है .
वो बोला अजी रहने दो .वोट नहीं दी तो मोदी की सरकार कैसे बन गयी ? तुम सयाने नहीं हो सूतिया हो. जो काम करता है उसके काम को नहीं मानते हो और यू जनसंगी बना दिया. अब देखना कैसे तुम्हारी गा .... काटता है .
 हज्जाम की कैंची और जुबान दोनों तेजी से चल रही  थी .मैंने एक दो बार सफाई देने की कौशिश की उसने एक न सुनी .
सर के बाल कट गए. हज्जाम बोला दाड़ी भी बनवा लो बहुत बढ़ गयी  हैं .
मैंने कहा तुम फिर ज्यादा पैसे मांगोगे लेकिन कोई बात नहीं तुम अपनी पार्टी के आदमी दिखते हो जो तुम्हारा मन करे वो ले लेना. अब दाडी भी बना ही दो .इस बहाने तुमसे कुछ ओर सुनने को मिलेगा .
वो हेंहें करके हँसते हुए बोला बाबूजी बात ऐसी है कि सबसे पंद्रह रुपये दाडी मुंडन के लेता हूँ लेकिन आपसे दस रुपये लूँगा. वो तो मैं ये कह रहा था कि अखिलेश ने इतना काम किया जितना किसी नेता नहीं किया है .फिर आपने उसे क्यूँ नहीं जिताया है ? उसने कितनी बढ़िया सड़क बनायी .उसने बच्चों को लैपटॉप दिए, उसने एम्बुलेंस चलाई,जचा बछा को पैसे दिए. साईकिल बांटी कितना काम किया है.  उसे तो वोट देनी चाहिए थी .
 मैंने कहा हाँ भाई उसने बढ़िया काम किये. लेकिन लोग अब काम नहीं देख रहे वो जुमले सुन रहे हैं .जुमले सुनकर झूम रहे हैं. बहक रहे हैं .
नाई बोला हाँ जी यही तो मैं कह रहा हूँ. आप लोग अगर अखिलेश को जिता देते तो वो मोदी को भी हरा देता.उसने राहुल गांधी को पीछे छोड़ दिया. पब्लिक अखिलेश को सुनकर खुश होती थी राहुल से खुश नहीं थी .
मैं उत्तराखंड में बैठे एक अधेड़ उम्र के  छोटे पेशेवाले वाले अनपढ़ मजदूर से ये बात सुनकर चोंक गया .ये ऐसी बात थी जिसे कहते हुए मैं भी हिचक जाता था और सोचता था कि अगर मैं ये कहूँगा की अखिलेश यादव, राहुल गांधी से ज्यादा काबिल नेता हैं तो लोग हंस पड़ेंगे .
मैंने उससे कहा यू पी के लोग बदलाव चाहते थे. काफी दिनों से भाजपा सत्ता से बाहर थी सपा बसपा का शासन देख चुके थी उन्हें लगता था जब सारा देश मोदी के साथ है तो उन्हें भी साथ होना चाहिए.  क्या पता मोदी दूसरों को क्या दें दें और वे देखते रह जाएँ .
वह बोला कद्दू देगा मोदी. तीन साल में क्या दिया है जो सबको मिल गया और तुम्हें नाहीं मिला है ? अरे उस पे बातें फेंकने के सिवा देने के लिए कुछ नहीं है .
मैंने कहा ऐसी बात है तो तुमने क्यूँ वोट दी है? हरीश रावत भी तो भला आदमी है .क्यूँ भाजपा की सरकार बनवा दी ?
वह बोला बस जी कूछ ना पूछो. इन पहाड़ियों के अक्ल तो होती नहीं है .सीधे आदमी हैं. बहकावे में आ जाते हैं.सो आ गए और दे आये जंगसंगियों को वोट .
मैंने कहा सब जगह एक से लोग हैं .भावनाओं में बह जाते हैं .लेकिन काठ की हांडी एक बार चढ़ती है . यू पी वालों ने वो चढ़ा दी है तो उतार भी लेंगे .
वह बोला अजी अब क्या उतारोगे तुमने दो देश का बेडा गर्क कर दिया .यू पी से थामा थम सकता था पर तुम तो बछिया के ताऊ निकले .
मैंने कहा देख भाई तुम मुझे कुछ न कहो .मैंने कभी इनको सपोर्ट नहीं किया है लेकिन जनता जनता होती है उसका फैसला सर माथे पर है .
वो बोला बाबूजी तुम नाराज मत होऊ मैं तुम्हारे लिए चाय लेकर आता हूँ .तब तक तुम अपना सामान यहीं रख कर गंगाजी में नहाओ .
मैंने कहा मैं नाराज नहीं हूँ मैं तो ये सोच कर खुश हूँ कि तुम्हारे जैसा गरीब मजदूर भी देश की राजनीति को इतनी अच्छी तरह समझता है जितनी राजनेता भी नहीं समझते हैं .
वो बोला राजनीति हम क्या जाने बाबूजी. हमें तो मेहनत मजदूरी करके अपना पेट भरना है .
मैंने कहा पेट भरते हुए देश के लिये सोचना अच्छी बात है.जो ऐसा  करता है वही सच्चा  देशभक्त है .
वह बोला क्या यू देश नेताओं का ही है ? बाबूजी देश तो सबका है. फिर हम देश के लिये क्यूँ  ना सोचें ?
मैंने कहा यही बात तो मैं कह रहा हूँ .यार तुम बढ़िया आदमी मिले हो तुम से मिलकर मजा आगया. तुम्हारा क्या नाम है भाई ?
वह बोला बाबूजी मेरा नाम मुर्तजा है .मैं मुसलमान हूँ .अपना मजहब क्यूँ छुपाऊंगा?
मैंने कहा बिलकुल नहीं छुपाना है. ये देश सबका है हिन्दूओं का भी मुसलमानों का भी .
वह खुश होते हुए बोला हाँ बाबूजी हमने भी देश के लिए कुरबानी दी है .अंगेजों को मारकर भगाया है .इन जंग संगियों ने क्या किया है ? किसी एक भी अंगेज को कहीं  मारा है ?
मुर्तजा भाई मेरे दिमाग का फ्यूज उड़ा रहा था .मुझे अंदाजा ही नहीं था कि हम दिन रात लिखने पढ़ने वालों से ज्यादा स्पष्ट सोच ये अनपढ़ आदमी रखता है .उसकी जानकारियों और किस्सों का खजाना  ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रहा था . 
मैंने कहा मुर्तजा भाई पहले मैं नहा लेता हूँ उसके बाद फिर तसल्ली में बैठ कर बात करेंगे .
वो बोला हाँ आप नहा कर आओ बाबूजी मैं आपके लिए चाय लेकर आता हूँ .  अपने सामान की बिलकुल चिंता मत करना. यहाँ कोई नहीं छुएगा .
मैं गंगा में स्नान करने लगा. अकेला था सामान की फ़िक्र रहनी ही थी .ऐसे ही किसी पर विश्वाश कैसे कर लिया जाए ? यही  सोचता गंगा में डूबकी लगाता और पानी से मुंह बाहर निकाल कर एक निगाह सामान पर डाल लेता .
 स्नान कर गंगाजी से बाहर आया. तब तक मुर्तजा भाई चाय ले आये . उनके साथ बैठकर चाय पीते हुए बातें होने लगी.वो बोला बाबूजी ये गंगा हमारी माँ है .इसी से हमें रोटी मिलती है.हम गंगा से वजू करते हैं और नमाज पढ़ते हैं.
मैंने कहा मेरी गंगा में कोई धार्मिक आस्था नहीं है .मुझे हर नदी अच्छी लगती है लेकिन मैदान में नदियाँ सड रही है, मर रही हैं.यहाँ गंगा अभी बची है इसलिए यहाँ आना अच्छा लगता है .
वह बोला बाबूजी गंगा नहीं लोगों की सोच खराब हो गयी है .लोगों ने इसे व्यापार का जरिया बना लिया है. अब देखो ना कितने होटल कितनी दूर तक बना लिए हैं .पहले इतने होटल नहीं थे .
मैंने कहा भाई मुझे तो कहीं कमरा नहीं मिलता था . सब कहते थे अकेले आदमी को नहीं देंगे 
वह बोला यही तो बात है बाबूजी अकेले को पता नहीं क्या समझते हैं ? जबकि लोग यहाँ किराए की औरते लाकर ऐयाशी करते हैं .ये होटल उन लोगों के लिए बने हैं .इन लोगों ने माँ गंगा का कुछ मान वान नहीं रखा है .
मैंने कहा आप की बात भी ठीक है .लेकिन सब ऐसे  नहीं हो सकते हैं .
वह बोला हाँ बाबूजी पाँचों उंगलियाँ एक सी नहीं होती है लेकिन गरीब आदमी, मजदूर आदमी ठीक होता है ये बड़े लोग कम ही ठीक होते हैं .
उसकी बातें ख़त्म  होने का नाम नहीं ले रही थी. ग्राहक कोई आ नहीं रहा था. उसे शायद बतकही का अच्छा मोका मिला था .मैंने उससे विदा मांगी और हाथ मिलाकर कहा आपसे मिलकर बहुत अच्छा लगा .इंशाअल्लाह फिर मिलेंगे. सलाम मुर्तजा भाई .
वो बोलासलाम बाबूजी जब कभी आओ जरूर मिलना. मेरी इस पुल के पास ही दुकान है. तीस साल से यही दुकान लगाता हूँ.कभी भी आना आपकी अपनी दुकान है .
  मैंने उस का शुक्रिया अदा किया और सारे रास्ते ये सोचते हुए चला आया कि जब इस देश का आम आदमी इतना समझदार है तो लोग पढ़ लिख कर मूर्ख क्यूँ बन रहे हैं ?


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