वो मेरी जान है घर से कभी आती है जाती है
नजर हर बार उसको देखने को उठ ही जाती हैं .
मैं घर अपना बदल लूँ रास्ता वो तो न बदलेगी
इधर से जब गुजरती हैं तो सीटी बज ही जाती है.
बहुत चाहा उसे हसरत भरी नज़रों से न देखूँ
मगर मजबूर उन की दिल से चाहत ही ना जाती है .
कभी वो रूठती, बलखाती है,आँखें दिखाती है
कभी जब बात करते हैं तो उस को शर्म आती है .
कभी वो खिलखिलाकर जोर से हंसती है महफ़िल में
कभी वो सोच के गहरे समंदर डूब जाती है .
मोहब्बत हो गयी उससे कभी सोचा ना ये देखा
कि उसका कौन सा मजहब है उसकी कौन जाति है .
वो मेरे घटिया शेरों पर भी मुझ को दाद देती हैं
मुझे लिखना नहीं आता, समझ वो भी ना पाती है .
नजर हर बार उसको देखने को उठ ही जाती हैं .
मैं घर अपना बदल लूँ रास्ता वो तो न बदलेगी
इधर से जब गुजरती हैं तो सीटी बज ही जाती है.
बहुत चाहा उसे हसरत भरी नज़रों से न देखूँ
मगर मजबूर उन की दिल से चाहत ही ना जाती है .
कभी वो रूठती, बलखाती है,आँखें दिखाती है
कभी जब बात करते हैं तो उस को शर्म आती है .
कभी वो खिलखिलाकर जोर से हंसती है महफ़िल में
कभी वो सोच के गहरे समंदर डूब जाती है .
मोहब्बत हो गयी उससे कभी सोचा ना ये देखा
कि उसका कौन सा मजहब है उसकी कौन जाति है .
वो मेरे घटिया शेरों पर भी मुझ को दाद देती हैं
मुझे लिखना नहीं आता, समझ वो भी ना पाती है .
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