गुरुवार, 6 अप्रैल 2017

मजहब की दुकान


जब हम शटर गिरा देंगे हर मजहब की दुकान का
दिल से दिल का रिश्ता होगा तब सच्चे इन्सान का |

पढ़ लिख कर आगे बढ़ने से रोक ना बिलकुल पायेगा
घंटें घडियालों का हो या फिर वो शौर अजान  का |

जन्नत और जहन्नुम जाने की तकरीरे खारिज कर
खुद का ही विश्वाश रहेगा मेहनत और ईमान का |

सदियों से जो जुल्म सहा है गिन गिन कर बदला लेंगे 
हर हिसाब चुकता कर देंगे हम जालिम शैतान का |





दिल टूटने की खास कोई उम्र न होती,
पकती है उम्र दिल कभी पकता नहीं देखा|
नाजुक सी चीज है कहाँ सहेज के रखें ,
बिन्दू कभी तोड़े इसे,तोड़े कभी रेखा|



मेरे सारे दुश्मन बने ख़ास तेरे
नहीं  है जगह वास्ते कोई मेरे
मुझे पास आने का मौका न 
कोई मेरे तो सभी रास्ते वो हैं घेरे .


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