हे ग्राम देवता नमस्कार !
सोने चांदी से नहीं किन्तु, तुमने मिटटी से किया प्यार |
सदियों से है मालूम हमें तुम मिटटी में हो पले बढ़े
मिटटी से तुमने महल चिने, मिटटी से तुमने ताज गढ़े|
मिटटी से फूल खिलाएं हैं तुमने सारे खुशबू वाले
जिनसे सब सजी अप्सराएं सब देव दमकते बू वाले|
अफसोस मगर कृतघ्न सभी करते हैं तुम्हारा तिरस्कार |
हे ग्राम देवता नमस्कार !
तुमने सबको फल, फूल दिए, खाने को देते हो अनाज
लेकिन खुद भूखे सो जाते, प्यासे भी रहते बहुत आज
कर्जा,बेकारी, बीमारी किस्मत में लिख कर आई हैं
तुमने किस शासन से पूरी मेहनत की कीमत पायी है ?
अन्नदाता को मारे भूखा ऐसी सत्ता को दो नकार |
हे ग्राम देवता नमस्कार !
हलधर हो हल हथियार बना अपने दुश्मन को ललकारों
सिंहासन से नीचे खींचों, धरती पे पटक पटक मारों |
संग्राम लड़ा जाए फिर से ग्रामों, खेतों, खलिहानों में
वो हवा हवाई हो जाएँ, जो उड़ते रोज विमानों में |
फिरओन गया,फिर जार गया,तुमसे हर जालिम गया हार !
हे ग्राम देवता नमस्कार !
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