रविवार, 2 जुलाई 2017

साठ रुपये के एक किलो जब आम हो गये




साठ रुपये के एक किलो जब आम हो गये |
कम कैसे सरकार सभी के दाम हो गये ?

पीले पीले आम सजे ठेले पर बिकते
हम भी लें ले इतने कहाँ हुए हैं सस्ते ?
घर भर का है रोज तकादा आम चखेंगे
हम आमों से बचकर बदल रहे हैं रस्ते |

आम नहीं अब तोहफे और ईनाम हो गये |
साठ रुपये के एक किलो जब आम हो गये |


मंहगाई ने तोड़ दिए बरसों के नाते
आड़त पर सब बढा रहे हैं अपने खाते |
नहीं आम की दावत देता दोस्त कोई है
याद दिलाने पर भी थोड़ा नहीं लजाते |

जिसको देखो उसे जरुरी काम हो गए |
साठ रुपये के एक किलो जब आम हो गये |


आम नहीं अब आम, फलों का वो है राजा
सबके लिए नहीं खुलता उसका दरवाजा |
मरजी है उसकी दर्शन दे, ना दे दिन में
उसकी मरजी हो वो आधी रात को आजा |

ग्वाला समझे थे जिनको घनश्याम हो गए |
साठ रुपये के एक किलो जब आम हो गये |









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