शुक्रवार, 29 सितंबर 2017

क्या राष्ट्रवाद अँधेरे का नाम है ?

        बहुत आन्दोलन देखें हैं, बहुत हड़तालें देखी हैं,बहुत धरने प्रदर्शन भी देखें हैं,सबको यही शिकायत रहती है कि समाज के बाकी लोग उनकी जायज मांगों में भी उन के साथ खडा नहीं होते हैं |किसान धरना देते हैं तो कर्मचारी साथ नहीं आते हैं कर्मचारी धरना देते हैं तो मजदूर साथ नहीं आते हैं | मजदूर धरना देते हैं तो विद्यार्थी साथ नहीं आते हैं |विद्यार्थी आवाज उठाते हैं तो किसान ,मजदूर साथ नहीं आते हैं |मतलब सबको शिकायत है कि कोई उन का साथ नहीं देता है | ख़ास तौर से नेताओं से सबको शिकायत होती है कि वो सिर्फ वोटों के लिए ही आते हैं बाकी कभी दिखाई नहीं देते हैं |
वास्तव में समाज के एक हिस्से में दर्द हो तो दूसरे हिस्से को भी महसूस होना चाहिए जो कम ही होता है| लेकिन जब दूसरे तबके के लोग किसी के संघर्ष में शामिल होने के लिए पहुंचते हैं या उनकी आवाज को बल देते हैं तो लोगों को लगता है कि राजनीति हो रही है | उनकी जायज मांग कहीं पीछे रह गयी है और लोग अपनी नेतागिरी चमकाने आ गये हैं | जैसा कि अभी बी एच यू के आन्दोलनकारियों ने कहा है कि कुछ लोग उन के आन्दोलन को हाई जैक कर रहे हैं | कौन हाई जैक कर रहा जी ? क्या लोगों की बेटियाँ नहीं हैं ? क्या बेटियों के हक़ में आगे आना गैर जरुरी है ?
      ये बात संदेह से परे नहीं है कि कुछ लोग नेतागिरी करना चाहते हैं या आन्दोलन को हाईजैक कर रहे हैं | लेकिन ये कथन भी संदेह के दायरे में है कि लोग हाई जैक कर रहे हैं | बहुत संभव है कि ये बात सत्ता के दबाव में कही जा रही हो | फिर भी ये सवाल तो अपनी जगह खडा ही रहता है कि जब समाज के किसी वर्ग विशेष का दमन हो रहा हो तो क्या जागरूक लोग कुछ करें या ना करें ? राजनेताओं को आप कितनी भी हिकारत से देखें लेकिन ये बात जान लीजिये कि अंतत: मसलें राजनीति से ही हल होते हैं, व्यवस्था वही बनाती है | इसलिए नेताओं का दखल लाजिमी है |
बी एच यू आन्दोलन में सियासी दलों के छात्र दस्तों ने और सियासी दलों के युवा दस्तों ने आगे बढ़कर जिस हौसले से बी एच यू की छात्राओं के लिए आवाज उठायी है, वो बिलकुल सही है | अगर वो ऐसा न करते तो उन के होने का कोई मतलब ना रह जाता  क्यूंकि कुलपति सहाब तो कसम खाए हैं कि वो विश्वविद्यालय से राष्ट्रवाद ख़त्म ना होने देंगे | ये समझ में नहीं आता है कि छात्राएं तो रास्ते में पसरे अन्धेरे और उस अन्धेंरे में होने वाली गुंडागर्दी को ख़त्म करने की मांग कर रही हैं फिर ये राष्ट्रवाद खतरे में कैसे से आ गया ? क्या राष्ट्रवाद अँधेरे का नाम है ? या अन्धेरे में होने वाली गुंडागर्दी का नाम राष्ट्रवाद है ?
         ए बी वी पी ने कहा है कि वो छात्राओं के साथ है | विश्विद्यालय में गुंडागर्दी ख़त्म होनी चाहिए | उधर वी सी कहते हैं कि राष्ट्रवाद ख़त्म ना होने देंगे | राष्ट्रवाद खतरे में है| ए बी वी पी पहले ये तय कर ले कि वह राष्ट्रवादी है या नहीं है| क्यूंकि वी सी सहाब को छात्राओं की मांगों से राष्ट्रवाद को खतरा दिखाई देता है | अगर ए बी वी पी छात्राओं के साथ खड़ी होगी तो राष्ट्रवाद कैसे बचेगा ? छात्राओं की इज्जत बचे ना बचे लेकिन वी सी सहाब का राष्ट्रवाद बचाना चाहिए | भारत माता की जय ..वनदे मातरम .......वनदे मातरम्

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