सोमवार, 25 सितंबर 2017

मैं चुप था


मारा नजीब को मैं चुप था 
बेटा वो और किसी का था 
मारी माँ गौरी मैं चुप था 
की सीनाजोरी मैं चुप था 
मुझको शरीफ बन जीना था 
हर घूँट जहर का पीना था
अब वो बेटी को छेड़ रहे
इज्जत को खूब उधेड़ रहे
क्या अब भी मैं चुपचाप रहूँ ?
गुंडों को माई बाप कहूँ ?
ये जुल्म नहीं सह सकता मैं
गुण्डे को गुण्डा कहता मैं |
मैं घर घर कहता डोलूँगा 
चौराहें पर भी बोलूंगा 
औ गुंडों के सरदार सुनो !
मक्कार सुनों बदकार सुनों ! 
ना डरेंगे दहशत गर्दी से
हम लड़ेंगे खूनी वर्दी से
देखें वो कितना ऐठेंगे ?
खामोश नहीं हम बैठेगे 
हम गोल बनाकर आयेंगे 
दुश्मन को धूल चटायेंगे 

हर ईंट का पत्थर से जबाब 
देंगे,लेंगे हम सब हिसाब |

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