मारा नजीब को मैं चुप था
बेटा वो और किसी का था
मारी माँ गौरी मैं चुप था
की सीनाजोरी मैं चुप था
मुझको शरीफ बन जीना था
हर घूँट जहर का पीना था
अब वो बेटी को छेड़ रहे
इज्जत को खूब उधेड़ रहे
क्या अब भी मैं चुपचाप रहूँ ?
गुंडों को माई बाप कहूँ ?
ये जुल्म नहीं सह सकता मैं
मैं घर घर कहता डोलूँगा
चौराहें पर भी बोलूंगा
औ गुंडों के सरदार सुनो !
मक्कार सुनों बदकार सुनों !
ना डरेंगे दहशत गर्दी से
हम लड़ेंगे खूनी वर्दी से
देखें वो कितना ऐठेंगे ?
खामोश नहीं हम बैठेगे
हम गोल बनाकर आयेंगे हम लड़ेंगे खूनी वर्दी से
देखें वो कितना ऐठेंगे ?
खामोश नहीं हम बैठेगे
दुश्मन को धूल चटायेंगे
हर ईंट का पत्थर से जबाब
देंगे,लेंगे हम सब हिसाब |
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