सोमवार, 19 फ़रवरी 2018

नाता जोड़ कमेरों से, ले लो देश लुटेरों से |

नोटबंदी से आतंकवाद ख़त्म नहीं हुआ लेकिन बैंकों में जमा रकम हजम हो गयी | विदेशों में जमा काला धन देश में वापिस नहीं आया किन्तु देश के बैंकों में जमा सफ़ेद धन विदेश चला गया | आज काले धन के विरुद्ध अलख जगाने वाले सलवारी बाबा और कथित दूसरा गाँधी कहीं नजर नहीं आ रहे हैं |पता नहीं कहाँ तीर्थ यात्रा पर चले गए हैं | भारत माता की जय और वन्दे मातरम की आवाज भी सुनाई नहीं दे रही है | अजब मरघटी सन्नाटा है | मेरा दिल बहुत घबरा रहा है| क्या मैं अपने ही देश में हूँ | लगता तो नहीं है कि मैं भारत देश में हूँ | अरे भाई कुछ करो |इस सन्नाटे को तोड़ो |कुछ ना हो सके तो किसी मोहल्ले में तिरंगा यात्रा ही निकाल दो | तुम्हारे हरकत में रहने से अपने जिन्दा होने का एहसास बना रहता है| आखिर तुम चाहे जैसे भी हो लेकिन अपने ही हो ना ? कोई गैर तो नहीं हो ? वो जो पैसा लेकर भाग गया वो किसी का सगा नहीं है |वो भारत में नहीं आएगा | वो कहीं और रह लेगा |लेकिन हम तो यहीं भारत में ही रहेंगे | भारत हमारी माँ है| भारत हमारा बाप है | आओ चलो हम तुम साथ मिलकर नारे लगाएं हिन्दोस्तां की जय | नाता जोड़ कमेरों से, ले लो देश लुटेरों से |

बैंक घोटाले को गौर से देखें तो यहाँ नीति और नीयत दोनों में खोट नजर आता है | किसान हो या आम आदमी उसे जितना ऋण धक्के खा के मिलता है उससे कई गुना कीमत की सम्पति गिरवी रख ली जाती है किन्तु लगता नहीं है कि बैंक का अरबों रूपया लेकर भाग जाने वाले इन जालसाझों से ऐसी कोई जमानत ली गयी होगी |
अब नीरव मोदी से ही पांच हजार करोड़ के हीरों की जब्ती की जो बात बतायी जा रही है वो भी फ्राड है | हीरे की एक की जगह पाँच गुना ज्यादा कीमत आँकी जा रही है ताकि नुकसान को कम करके दिखाया जा सके |
पूंजी हमेशा ही धोखाधड़ी से जमा होती है | सबसे पहले वह मजदूर के पसीने की चोरी करती है,फिर ग्राहक की जेब तराशती है, सरकारी अनुदान और कर छूट हजम करती है और मौका लगते ही बैंकों में जमा आम आदमी का धन सटक लेती है | इतने सारे घपले करके कोई आदमी पूँजी इकट्ठी करता है और फिर और पूंजी बनाने के लिए अपना साम्राज्य फैलाता जाता है | इसके लिए वह सत्ता की मदद लेता है और सत्ता को अपने पक्ष में करता है किन्तु अगर वो उसके मनमाफिक नहीं होती है तो वो उसे बदल देता है| पूंजीपति राष्ट्रीय हितों की आड़ में अपने अपने मुनफाखोरी की खूनी जंग लड़ते हैं और जनता राष्ट्रवाद के ज्वार में गोते खाती रहती है | बहुराष्ट्रीय पूँजी [कारपोरेट पूँजी] पूरी तरह आवारा और स्वार्थी होती है उसकी अपनी कोई राष्ट्रीय प्रतिबद्धता नहीं होती है | नीरव मोदी इसी आवारा पूँजी का वाहक है उसकी तो नागरिकता भी विदेशी है 

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