रविवार, 4 फ़रवरी 2018

सरकारी कर्मचारी और लेखन

'हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम'

अगर आप सरकारी कर्मचारी हैं तो आपको अखबार नहीं पढ़ना चाहिए, न्यूज चैनल नहीं सुनना देखना चाहिए, किसी मंत्री / नेता का भाषण नहीं सुनना चाहिए | अगर आप सुनते देखते हैं और सुन कर देखकर कुछ सोचते विचारते हैं और फिर अपनी कुछ राय बनाते हैं तो आपको उसे व्यक्त नहीं करना चाहिए | क्यों नहीं करना चाहिए ? इसलिए नहीं करना चाहिए क्यूंकि आप सरकार से काम करने का पैसा लेते हैं सरकार आपको सोचने विचारने लिखने पढ़ने के लिए पैसा नहीं देती है, काम करने के लिए पैसा देती है |इसलिए बस अपने काम से काम रखिये | चौबीस घंटे सातों दिन सिर्फ काम और कुछ नहीं | सरकार आपसे सिर्फ यही चाहती है |आप आम नागरिक नहीं हैं जिसे संविधान से बोलने का अधिकार, समानता का अधिकार, चुनने और चुने जाने का अधिकार मिला है |आपका बोलना कर्मचारी आचार संहिता का उल्लंघन है जो  दंडनीय है | आप रिश्वत लें,जुआ खेलें ,शराब पियें अय्याशी करें, मुखबिरी करें, या सरकारी काम कम हरामखोरी ज्यादा  करें ये सब चलेगा लेकिन अगर आप कुछ ऐसा बोले जो सरकार के माफिक नहीं है तो सजा के हकदार हैं | 
ये है आजादी | अगर इसे आजादी कहते हैं तो फिर गुलामी किसे कहते हैं ? गुलामों  को भरपेट खाना मिलता है, बड़े गुलाम हैं तो  जनता को लूटने का पूरा अधिकार दिया जाता है | इसके अलावा समय समय पर तमगे और उपाधियाँ भी दी जाती हैं बस बोलने का हक़ नहीं दिया जाता है | बोलने का हक़ सिर्फ आजाद नागरिक को मिलता है | गुलाम  बोलने के लिए आजाद  नहीं है |
फिर ये समझ में नहीं आता है पढ़े लिखे कर्मचारी क्यों रखे जाते हैं ? इससे तो अच्छा है अनपढ़ कर्मचारी रखें जो ना कुछ पढ़ेंगे ना कुछ लिखेंगे | अब अगर कोई कुछ पढ़ेगा तो उसके दिमाग में कुछ विचार भी आएंगे| विचार आएंगे तो हाथ  और जुबान दोनों कुलमुलायेंगे | कुलमुलायेंगे तो वो बोलेगा भी और लिखेगा भी | अब आप कहेंगे सरकारी कर्मचारी है सिर्फ के पक्ष में लिखे दूसरी कोई बात ना लिखे या हीर रांझा  के किस्से लिखे |
जनाब लिख तो हीर राँझा का किस्सा भी लें लेकिन इस बात की क्या गारंटी  है कि सरकार उसे अपने खिलाफ लिखा हुआ नहीं मानेगी ? वैसे भी जब  आप लिखने की हद तय कर देते हैं तो फिर लिखने का कुछ मतलब नहीं रह जाता है |
सरकारी  नीतियों के पक्ष में ही अगर लिखा जाए तो क्या गारंटी है कि सरकार बदलने पर नीतियां  नहीं बदलेगी और जो पहले लिखा गया है वो सरकार  के विरुद्ध नहीं माना जाएगा ? पहले सर्वधर्म  समभाव और धर्मनिरपेक्षता की नीतियों को बढ़ावा देने वाला लेखन  राष्ट्रिय एकता की जरुरत माना जाता था आज धर्म विशेष के जबरिया महिमामंडन को महिमा मंडित करना राष्ट्रवादी लेखन माना जाता है |
संदर्भवश उल्लेख किये देता हूँ कि वन्दे मातरम राष्ट्र गीत लिखने वाले बंकिम चंद्र चटर्जी सरकारी नौकर थे और प्रेमचंद भी सरकारी नौकर थे लेकिन तत्कालीन सरकार ने  लिखने के कारण उनके विरुद्ध कार्यवाही नहीं की थी |
एक विदेशी लोगों की सरकार अपने गुलामों के लेखन को बर्दाश्त कर लेती है लेकिन स्वदेशी  लोगों की सरकार स्वदेशी लोगों के लेखन को भी बर्दाश्त नहीं कर रही है | क्या ये सरकारी कर्मचारी लेखक देश तोड़ने का काम कर रहे हैं ? अगर ऐसा नहीं है तो इनके लिखने बोलने से किसी को क्या परेशानी है ? ब्रिटेन   के अंदर वहाँ की पार्लियामेंट ने ऐसे कर्मचारियों की सुरक्षा सुनिश्चित करने का कानून पास  किया  हुआ है जो सरकार के अंदर रहकर  जन हित  में सरकारी  सूचनाओं को जनता में उजागर करते  हैं ताकि  सरकार के जनविरोधी  कामों  को समय रहते जनता जान सके | इसमें भ्रष्टाचार से जुड़े मसलें भी होते हैं और सरकारी दमन के तौर तरीके बताने वाले भी | हमने लोकतंत्र और संविधान की जो धारणा अंगेजों से ली है उसे उसी पथ पर और आगे ले जाने कि जरुरत है | अगर सरकारें अपने हिसाब से अभिव्यक्ति की सीमाएं तय करेंगी तो उसके परिणाम कोई बहुत  सुखद नहीं होंगे | लोकतंत्र में एक यही तो खूबी   है कि दर्द बयान किया जा   सकता  है इलाज तो व्यवस्था में बदलावे से होता है | आप हमें दर्द भी बयान नहीं करने देते हैं जबकि खुद दर्द पे दर्द दिए जाते हैं |दर्द एक हो तो गिनाऊँ हजार दर्द हैं | हम आह भी भरते हैं तो हो जाते हैं बदनाम

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