रविवार, 23 सितंबर 2018

मुहर्रम और ताजिये

                   हमारे कस्बे में बहुत पहले से रामलीला होती रही है। मैंने रामकथा की बेसिक जानकारी रामलीला देखकर ही प्राप्त की है।महाभारत की कथा का ज्ञान महाभारत सीरीयल से मिला  है। यद्यपि साहित्य की बहुत सी किताबें पढकर भी इन धार्मिक कथाओं को जानने समझने का प्रयास किया है लेकिन मैं समझता हूँ मेरी तरह ही ज्यादातर आम आदमियों ने रामायण और महाभारत की महागाथा को ऐसे ही देख सुनकर जाना है। मूल ग्रन्थों का अध्ययन कर जानने समझने वाले लोग चन्द विद्वान  ही रहे हैं, आम जनता नही है। मैं समझता हूँ इस दृष्टि से रामलीला का मंचन बहुत सार्थक है। महाभारत,रामायण टी वी सीरियल हो या रामलीला इसके सरस और जीवंत प्रदर्शन के दर्शन कर अहिन्दू भी इन महान गाथाओं से उतना ही परिचित हो जाता  है जितना एक हिन्दू  होता है।
  हमारे यहाँ बरसों तक एक खास मुस्लिम परिवार द्वारा ही भगवान श्रीराम की आरती कर रामलीला का शुभारम्भ किया जाता रहा है। कभी भी किसी ने भी उनके अहिन्दू म्लेच्छ होने पर ध्यान नहीं दिया और एक पारिवारिक सदस्य की तरह ही उन्हें मान दिया जाता है।
 मेरे मन में बराबर ये सवाल उठता रहा है कि जिस तरह हम महाभारत और रामायण की महागाथा से सहज रूप से परिचित हैं उसी प्रकार इस्लाम धर्म और कर्बला, हुसैन और यजीद की मूल गाथा से क्यूँ परिचित नहीं हैं?  यह कितने शर्म की बात है कि इस्लाम के मानने वाले हमारे पड़ौसी अपने धार्मिक त्यौहार परम्परागत तरीके से मनाते आ रहे हैं और हम उस परम्परा और विश्वाश से नितान्त अपरीचित हैं। मौहर्रम और ताजिये क्या हैं ? ईद और बकराईद के मनाने का क्या कारण है क्या सही इतिहास  है?इमाम हुसैन और अन्य इस्लामिक महापुरूषों और इस्लामी रीति रिवाजों का क्या मूल रूप और इतिहास है? ये हम नहीं जानते हैं| क्या इस सर्वत्र व्यापि  अज्ञानता और अजनबीपन को खत्म नहीं किया जाना चाहिये ?
 अगर हम इस्लाम सहित सभी धर्मों की सही और पूर्ण जानकारी रखेंगे तो समाज में परस्पर नासमझी से होने वाले अन्तरकलह से मुक्ति मिल जायेगी। कम से कम अपने पड़ोसियों के धार्मिक विश्वाश, आस्था और गाथा का तो हमें ज्ञान  होना ही चाहिये।

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