उलटे लटक रहे चमगादड़
दुनिया उलटी बता रहे हैं |
ढोंगी वेश भरे साधू का
सबको कपटी बता रहे हैं |
उल्लू बैठा हुआ शीर्ष पर
वानर उछल कूद करते हैं |
गऊमाता के पुत्र बैल सब
चरते खेत नहीं डरते हैं |
डर मजदूर किसानों में हैं
बे रुजगार जवानों में है |
कारोबारी डरे हुए सब
खाली पड़े खजानों में है |
उल्लू को दिन पसंद नहीं है
वो कहता है रात रहेगी |
चमगादड़ भी बता रहे हैं
उलटी सबकी खाट सजेगी |
जो भी सीधी राह चलेगा
या फिर सीधी बात कहेगा |
समझो उसकी खैर नहीं है
जो न दिन को रात कहेगा |
माना बदला हुआ वक्त है
बुद्धिजीवी बदले सारे |
लेकिन दिन को रात,रात को
दिन बोलेंगे कैसे प्यारे ?
दिन तो दिन होता है उजला
दिखे नहीं कुछ धुंधला धुंधला |
रात अंधेरी को दिन बोले
धूर्त कोई बुद्धि का कंगला |
ज्यादा नहीं मगर इतनी तो
समझ हमारे पास रही है |
तुमने कहा रात है अच्छी
देखें कितनी बात सही है ?
ऐसा क्या हो गया जो दिन
से अच्छी सच्ची रात हो गयी |
खुद को सच्चा कहने वाले
झूठों की बारात हो गयी |
कोई तो होगा जो अब भी
सच की हक़ की बात करेगा |
झूठों की इस बड़ी सभा में
सच कहने से नहीं डरेगा |
जो बोलेगा रात है काली
उल्लू करता है रखवाली |
चमगादड़ों लटक जाने से
बात नहीं है बनने वाली |
हम लाएंगे नया सवेरा
कायम क्यूँ ये रहे अंधेरा ?
सिर्फ उजाले में तय होगा
किसका तंग सोच का घेरा |
दुनिया उलटी बता रहे हैं |
ढोंगी वेश भरे साधू का
सबको कपटी बता रहे हैं |
उल्लू बैठा हुआ शीर्ष पर
वानर उछल कूद करते हैं |
गऊमाता के पुत्र बैल सब
चरते खेत नहीं डरते हैं |
डर मजदूर किसानों में हैं
बे रुजगार जवानों में है |
कारोबारी डरे हुए सब
खाली पड़े खजानों में है |
उल्लू को दिन पसंद नहीं है
वो कहता है रात रहेगी |
चमगादड़ भी बता रहे हैं
उलटी सबकी खाट सजेगी |
जो भी सीधी राह चलेगा
या फिर सीधी बात कहेगा |
समझो उसकी खैर नहीं है
जो न दिन को रात कहेगा |
माना बदला हुआ वक्त है
बुद्धिजीवी बदले सारे |
लेकिन दिन को रात,रात को
दिन बोलेंगे कैसे प्यारे ?
दिन तो दिन होता है उजला
दिखे नहीं कुछ धुंधला धुंधला |
रात अंधेरी को दिन बोले
धूर्त कोई बुद्धि का कंगला |
ज्यादा नहीं मगर इतनी तो
समझ हमारे पास रही है |
तुमने कहा रात है अच्छी
देखें कितनी बात सही है ?
ऐसा क्या हो गया जो दिन
से अच्छी सच्ची रात हो गयी |
खुद को सच्चा कहने वाले
झूठों की बारात हो गयी |
कोई तो होगा जो अब भी
सच की हक़ की बात करेगा |
झूठों की इस बड़ी सभा में
सच कहने से नहीं डरेगा |
जो बोलेगा रात है काली
उल्लू करता है रखवाली |
चमगादड़ों लटक जाने से
बात नहीं है बनने वाली |
हम लाएंगे नया सवेरा
कायम क्यूँ ये रहे अंधेरा ?
सिर्फ उजाले में तय होगा
किसका तंग सोच का घेरा |
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