शुक्रवार, 20 सितंबर 2019

कविता -ये दुनिया बदल कर ही अब लेंगे दम हम |

बहुत लोग आये उधम भी मचाये
मगर अब कहाँ हैं ?नहीं ढूँढ पाये

वो मुट्ठी तनी जो,जुंबा सनसनी जो
कहाँ है?किधर है ?,कोई तो बताये

रंगे वाल थे वो ,हाँ सुर्ख गाल थे वो
लिए हाथ ऊँचा,ध्वज लाल थे वो

बबालों की बस्ती,सवालों की हस्ती
वो गाते बजाते,जवानों की मस्ती

कहाँ है? किधर है ?,नजर अब ना आये
उठे कोई तो अब,उसे ढूँढ लाये |

नहीं चाहिए शान्ति शमशान जैसी
बड़े जालिमों की मुस्कान जैसी

हमें चाहिए बालकों की शरारत
युवाओं की मस्ती मधुर गुनगुनाहट

वो बेबात हँसना बहुत खिलखिलाना
ये दुनिया बदलने के नारे लगाना

अगर अब ना बदली तो बदलेंगे कल हम
ये दुनिया बदल कर ही अब लेंगे दम हम |










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