हिमाद्रि तुंग श्रृंग से प्रबुद्ध शुद्ध भारती
स्वयं प्रभा समुज्जवला स्वतंत्रता पुकारती
अमृत्य वीर पुत्र हो दृढ़ प्रतिज्ञ सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढे चलो बढे चलो |
स्वतंत्र होने के लिए नहीं कभी लड़े तो क्या ?
स्वतंत्रता संग्राम में कहीं नहीं खड़े तो क्या ?
स्वतंत्र हो स्वतंत्रता बचाने के लिए चलो
पुकारती हैं सरहदें लहू बहाने को चलो |
हरी भरी वे वादियां, वे श्वेत हिम शिखर बड़े
वे शत्रुओं की लपलपाती लाल आँख में गड़े
कहाँ दबे ढके छुपे बिलों से बाहर हो चलो
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढे चलो बढे चलो |
उठे नहीं अभी जो तुम, लड़े नहीं अभी जो तुम
जो शत्रुओं के शीश पे चढ़े नहीं अभी जो तुम
तो पददलित करेंगे सैन्य शत्रु दल ये सोच लो
प्रशस्त पुण्य पंथ है बढे चलो बढे चलो |
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