सारी उम्र गुजर जाती इस चिंता में
लोग भला समझें मुझको ,पर समझे क्या ?
सीधे सादे रहे, रहे मन मारे से
नैन हमारे उलझे तो पर सुलझे क्या ?
मन्दिर के दिये सब जल ही गये चहुं ओर फैलता उजियारा
मन के अन्दर भी जला दिया मिट जाये सारा अंधियारा ।
घनघोर हताशा तिमिर लिये मन भटक रहा दिल चटक रहा
तू एक लघु लौ रौशन कर पथ पर बढ़ तेरा जग सारा ।
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