रमेश रंजक
एक - चरवाहों का गीत
पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के
ढोर चराई के |
म्हारी ढोर चराई के |
कहीं सात के पांच थमाए
चार दिना फोके टरकाये
सगरे अवगुण भरे पड़े हैं दादालाइ के |
पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के |
बात नाट के आँख दिखावे
हमको चोर लबार बतावे
साँच ना बोले दाव चलावे अटक लड़ाई के
पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के |
जाको रुपैया वाको धेली
मारी मूर के गढ़ी हवेली
लालबहि के लाल! गए अब दिन ठगियाई के |
पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के |
दो
पास नहीं बैल .........बदरा पानी दे|
जालिम है ट्यूबवैल बदरा पानी दे |
इज्जतदार गरीब पुकारे
ढोंगी मारे दूध छुआरे
चटक रही खपरैल .... बदरा पानी दे |
छोड़ पन्छाही लटके झटके
एक बार नहला डट के
तू गरीब की गइल ....बदरा पानी |
ऐसी झडी लगा दे प्यारे
भेदभाव मिट जाये सारे
छूटे सारा मेल .....बदरा पानी दे |
तीन
दमन की चक्की पीस रही इंसान |
बापू के बन्दर की नाई,बैठे हैं बेईमान |
जिसने तीखी भाषा बोली उसकी वहीँ मार दी गोली
बता बेटी गैय्या मैय्या सब पर चला दमन का पहिया
कहाँ बचाएं कहाँ छुपाएं छोटा सा ईमान |
होरी पड़ा अचेत खेत में धनिया खाये पछाड़ रेत में
गोबर भूखा फायर शहर में ऐसी ही हालत हर घर में
प्रेमचंद के बाद दूसरा कौन लिखे गोदान |
रिश्वत खोरी चोरबजारी आदमखोर इजारेदारी
खड़िया मिला रही आते में खाते दिखा रही घाटे में
सबको उल्लू बना रही है पीछे की दूकान |
हर पल की दरार के भीतर झाँक रहा कोई आफिसर
सिसक रही कोई मजबूरी जांच कमिटी खानापूरी
करके, बना रही है अपनी कोठी आलिशान |
इधर अफसरी उधर तस्करी,आमदनी ये दुहरी तिहरी
नए जिस्म से करे ठिठोली खींचें निर्धनता की चोली
ये कुर्सी के कुत्ते हमको समझ रहे नादान |
कहीं नहीं होती सुनवाई,कितना ही चिल्लाओ भाई
फैली चारों और तबाही,लोकतंत्र है तानाशाही
बिना संगठन नहीं गिरेगी ये काली चट्टान |
दमन की चक्की पीस रही इंसान |
चार
परदे के पीछे मत जाना मेरे भाई !
टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे, बैठे हुए कसाई ।
बड़े-बड़े अफ़सर बैठे हैं
माल धरे तस्कर बैठे हैं
बैठे हैं कुबेर के बेटे
ऐश लूटते लेटे-लेटे
नंगी कॉकटेल में नंगी नाच रही गोराई ।
इधर बोरियों की कतार है
पतलूनों में रोज़गार है
बड़े-बड़े गोदाम पड़े हैं
जिन पर नमक हराम खड़े हैं
परदे के बाहर पहरे पर आदमक़द महँगाई ।
जिसने उधर झाँककर देखा
उसकी खिंची पीठ पर रेखा
काया लगने लगी गिलहरी
ख़ून गिरा पी गई कचहरी
ऐसा क़त्ल हुआ चौरे में लाश न पड़ी दिखाई ।
तेरी क्या औक़ात बावले
जो परदे की ओर झाँकले
ये परदा इस-उसका चंदा
समझौतों का गोल पुलंदा
ऐसा गोरखधंधा जिसकी नस-नस में चतुराई ।
जो इक्के-दुक्के जाएँगे
वापस नहीं लौट पाएँगे
जाना है तो गोल बना ले
हथियारों पर हाथ जमा ले
ऐसा हल्ला बोल कि जागे जन-जन की तरुणाई ।
पांच
बचकर कहाँ चलेगा पगले, चारों ओर मचान है |
हर मचान पर एक शिकारी, आँखों में शैतान है !
हवा धूल में बटमारीपन, छाया की तासीर गरम
सरमायेदारों के कपड़े, पहने घूम रहा मौसम |
नद्दी-नालों की ज़ंजीरें हरियल टहनीदार नियम
न्यायाधीश पहाड़ मौन हैं, खा-पीकर रिश्वती रकम|
सत्ता के जंगल की पत्ती-पत्ती बेईमान है !
चारों ओर अंधेरा गहरा, पहरा है संगीन का
महंगाई ने हाँका मारा, बजा कनस्तर टीन का |
जिनको पाँव मिले वे भागे, पंजा पड़ा मशीन का
जहाँ बचाएँ प्राण, नहीं रे ! टुकड़ा मिला ज़मीन का |
कहाँ छुपाएँ अंडे-बच्चे हर प्राणी हैरान है !
पहले पूरब फिर पच्छिम में, गोली चली मचान से
दक्खिन थर-थर काँपा, उत्तर चीख़ पड़ा जी-जान से |
सिसकी लेकर मध्यम धरती, बोली दबी ज़ुबान से
राम बचाए, राम बचाए, ऐसे हिन्दुस्तान से |
लाठी, गोली, अश्रु-गैस, जीना क्या आसान है ?
छ:
इधर दो फूल मुँह से मुँह सटाए बात करते हैं |
यहीं से काट लो रस्ता,
यही बेहतर |
हमें दिन इस तरह के
रास आए नहीं ये दीगर |
तसल्ली है कहीं तो पल रहा है
प्यार धरती पर |
उमर की आग की परचम उठाए बात करते हैं
यहीं से काट लो रस्ता
यही बेहतर |
खुले में यह खुलापन देखकर
जो चैन पाया है |
कई कुर्बानियों का रंग
रेशम में समाया है |
हरे जल पर पड़े मस्तूल-साए बात करते हैं
यहीं से काट लो रस्ता
यही बेहतर |

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