रविवार, 21 मार्च 2021

जनवादी गीत संग्रह-' लाल स्याही के गीत'-10-रमेश रंजक



                                                              रमेश रंजक 


                 एक - चरवाहों का गीत 

पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के 

                                               ढोर चराई के |

                                     म्हारी ढोर चराई के |

कहीं सात के पांच थमाए 

चार दिना फोके टरकाये

सगरे अवगुण भरे पड़े हैं दादालाइ के |

पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के |


बात नाट  के आँख दिखावे 

हमको चोर लबार बतावे 

साँच ना बोले दाव चलावे अटक लड़ाई के 

पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर चराई के |


जाको रुपैया वाको धेली 

मारी मूर के गढ़ी हवेली

लालबहि के लाल! गए अब दिन ठगियाई के |

पैसा काट लिए जालिम ने म्हारी ढोर  चराई के |


          दो 

पास नहीं बैल .........बदरा पानी दे| 

जालिम है ट्यूबवैल बदरा पानी दे |    


इज्जतदार गरीब पुकारे 

ढोंगी मारे दूध छुआरे 

चटक रही खपरैल .... बदरा पानी दे |


छोड़ पन्छाही लटके झटके 

एक बार नहला डट के 

तू गरीब की गइल ....बदरा पानी |


ऐसी झडी लगा दे प्यारे 

भेदभाव मिट जाये सारे 

छूटे सारा मेल .....बदरा पानी दे |


      तीन 

दमन की चक्की पीस रही इंसान |

बापू के बन्दर की नाई,बैठे हैं बेईमान | 


जिसने तीखी भाषा बोली उसकी वहीँ मार दी गोली 

बता बेटी गैय्या मैय्या सब पर चला दमन का पहिया 

कहाँ बचाएं कहाँ छुपाएं छोटा सा ईमान |


होरी पड़ा अचेत खेत में धनिया खाये पछाड़ रेत में 

गोबर भूखा फायर शहर में ऐसी ही हालत हर घर में 

प्रेमचंद के बाद दूसरा कौन लिखे गोदान |


रिश्वत खोरी चोरबजारी आदमखोर इजारेदारी 

खड़िया मिला रही आते में खाते दिखा रही घाटे में 

सबको उल्लू बना रही है पीछे की दूकान |


हर पल की दरार के भीतर झाँक रहा कोई आफिसर 

सिसक रही कोई मजबूरी जांच कमिटी खानापूरी 

करके, बना रही  है अपनी कोठी आलिशान |


इधर अफसरी उधर तस्करी,आमदनी ये दुहरी तिहरी

नए जिस्म से करे ठिठोली खींचें निर्धनता की चोली 

ये कुर्सी के कुत्ते हमको समझ रहे नादान |


कहीं नहीं होती सुनवाई,कितना ही चिल्लाओ भाई 

फैली चारों और तबाही,लोकतंत्र है तानाशाही 

बिना संगठन नहीं गिरेगी ये काली चट्टान |

दमन की चक्की पीस रही इंसान | 

 

      चार 

परदे के पीछे मत जाना मेरे भाई !

टुकड़े-टुकड़े कर डालेंगे, बैठे हुए कसाई ।


बड़े-बड़े अफ़सर बैठे हैं

माल धरे तस्कर बैठे हैं

बैठे हैं कुबेर के बेटे

ऐश लूटते लेटे-लेटे

नंगी कॉकटेल में नंगी नाच रही गोराई ।


इधर बोरियों की कतार है

पतलूनों में रोज़गार है

बड़े-बड़े गोदाम पड़े हैं

जिन पर नमक हराम खड़े हैं

परदे के बाहर पहरे पर आदमक़द महँगाई ।


जिसने उधर झाँककर देखा

उसकी खिंची पीठ पर रेखा

काया लगने लगी गिलहरी

ख़ून गिरा पी गई कचहरी

ऐसा क़त्ल हुआ चौरे में लाश न पड़ी दिखाई ।


तेरी क्या औक़ात बावले

जो परदे की ओर झाँकले

ये परदा इस-उसका चंदा

समझौतों का गोल पुलंदा

ऐसा गोरखधंधा जिसकी नस-नस में चतुराई ।


जो इक्के-दुक्के जाएँगे

वापस नहीं लौट पाएँगे

जाना है तो गोल बना ले

हथियारों पर हाथ जमा ले

ऐसा हल्ला बोल कि जागे जन-जन की तरुणाई ।


                            पांच 

बचकर कहाँ चलेगा पगले, चारों ओर मचान है |

हर मचान पर एक शिकारी, आँखों में शैतान है !


हवा धूल में बटमारीपन, छाया की तासीर गरम

सरमायेदारों के कपड़े, पहने घूम रहा मौसम |

नद्दी-नालों की ज़ंजीरें हरियल टहनीदार नियम

न्यायाधीश पहाड़ मौन हैं, खा-पीकर रिश्वती रकम|

सत्ता के जंगल की पत्ती-पत्ती बेईमान है !


चारों ओर अंधेरा गहरा, पहरा है संगीन का

महंगाई ने हाँका मारा, बजा कनस्तर टीन का |

जिनको पाँव मिले वे भागे, पंजा पड़ा मशीन का

जहाँ बचाएँ प्राण, नहीं रे ! टुकड़ा मिला ज़मीन का |

कहाँ छुपाएँ अंडे-बच्चे हर प्राणी हैरान है !


पहले पूरब फिर पच्छिम में, गोली चली मचान से

दक्खिन थर-थर काँपा, उत्तर चीख़ पड़ा जी-जान से |

सिसकी लेकर मध्यम धरती, बोली दबी ज़ुबान से

राम बचाए, राम बचाए, ऐसे हिन्दुस्तान से |

लाठी, गोली, अश्रु-गैस, जीना क्या आसान है ?


                      छ:



इधर दो फूल मुँह से मुँह सटाए बात करते हैं |

यहीं से काट लो रस्ता,

यही बेहतर |


हमें दिन इस तरह के

रास आए नहीं ये दीगर |

तसल्ली है कहीं तो पल रहा है

प्यार धरती पर |

उमर की आग की परचम उठाए बात करते हैं 

यहीं से काट लो रस्ता

यही बेहतर |


खुले में यह खुलापन देखकर

जो चैन पाया है |

कई कुर्बानियों का रंग

रेशम में समाया है |

हरे जल पर पड़े मस्तूल-साए बात करते हैं

यहीं से काट लो रस्ता

यही बेहतर |


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