अश्वघोष
एक
महानगर के जंगल में हम घूम रहे होते शायद हमने कर डाले अनचाहे समझौते |
संधिपत्र तो लिखे प्यार की क़ीमत नहीं चुकी अपने ही अधरों में बन्दी अपनी हंसी-ख़ुशी
टूटे फूटे रिश्तों में बैलों से हम जोते | महानगर के जंगल में हम घूम रहे होते |
अम्मा की रामायण-गीता सहसा रूठ गई हरिद्वार के गंगाजल की शीशी फूट गई
पानी पर तिनके की नाईं घूमे समझौते | शायद हमने कर डाले, अनचाहे समझौते |
दो
चहल-पहल से भरे हुए है,संसद के गलियारे |
एक दूसरे को जा-जाकर सांसद कथा सुनाएँ, राजनीति के दाँव पेच में डूबी क्षेत्र कथाएँ
छूट रहे हैं कहकहों के शानदार फव्वारे | चहल-पहल से भरे हुए हैं ,संसद के गलियारे |
जनता के दुखदर्द जरा भी नहीं किसी को भाते, तोड चुके हैं सब गाँधी से अपने रिश्ते-नाते
दीवारों पर लिखवाते हैं,खुशहाली के नारे | चहल-पहल से भरे हुए हैं,संसद के गलियारे |
हिंसा को हथियार बनाकर अपना राज्य चलाएँ घर से लेकर खेतों तक बस ये दहशत फैलाएँ
मानवता का खून करें ये खुले आम हत्यारे | चहल-पहल से भरे हुए है,संसद के गलियारे |
तीन
कैसे सहें छतों का बोझा,सीलन से भीगी दीवारें ।
पानी-पानी अन्तर तल है,टुकड़े-टुकड़े बिखरा सीना, देख-देख बुनियादें दुबली पेशानी पर घिरा पसीना ।
जल्लादों-सी तेज़ हवाएँ दौड़-दौड़ चाबुक से मारें । कैसे सहें छतों का बोझा,सीलन से भीगी दीवारें ।
आँतों में दीमक की हरकत,आले-खिड़की लदे गोद में, चिड़ियों ने सब खाल खुरच दी आमादा होकर विरोध में
कोढ़ सरीखी चितकबरी-सी उभर रही तन पर बौछारें । कैसे सहें छतों का बोझा,सीलन से भीगी दीवारें ।
चार - 'अम्मा का खत'
बहुत दिनों के बाद मिला है अम्मा का खत गांव से |
बेटा तुमने शहर पहुंचकर घर की खुशियां खो दी पिता हुए अब बूढ़े टेड़े मुझको आये रतोंधी
हम दोनों का नाता टूटा खेत क्यार के काम से | बहुत दिनों ...
छोटा भाई एम ए करके घर पर ही बैठा है कभी नहीं होटों पर लाता जो अंदर सहता है
खड़ा खड़ा धरती पर जाने क्या लिखता है पांव से |बहुत दिनों ...
पिछले बरस विकट वर्षा में बैठ गया ओसारा अब छप्पर के नीचे ही रहता परिवार हमारा
तुम्हें बताओ जाएँ कहाँ हम अपने तैय्या ठाँव से |बहुत दिनों ...
इधर मारी मंहगाई भी अब आ बैठी है जम के रूखा सूखा खा पी कर हम घूँट पी रहजे गम के
बीत नहीं पाता है सचमुच पल पर भी आराम से |बहुत दिनों ....
बहिन तुम्हारी सयानी लगती ऊँच नीच का डर है गांव हमारा गांव नहीं अब शहरों से बदतर है
चोरी डाके सेंध रहजनी होते छैंया शाम से | बहुत दिनों ....
कल शीला के घर में घुसकर जबरन एक दरोगा लूट ले गया सारी इज्जत पता नहीं क्या होगा
चाकू लेकर खोज रहा है हरकू उसको शाम से | बहुत दिनों ....
रमचन्दी ने पटवारी से लिखा खतौनी नकली सांठ गाँठ करके अपनी कुछ धरती और हड़प ली
ढाई बीघे और बची है इस जालिम के दांव से |बहुत दिनों ....
बाकी सब तो कुशल क्षेम है तुम बेटा कैसे हो जल्दी ही लिखना एक पाती सही सही जैसे हो
सही सलामत रहो पुत्र हम विनती करते राम से | बहुत दिनों के बाद मिला है अम्मा का खत गांव से ||

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