गुरुवार, 25 मार्च 2021

जनवादी गीत संग्रह-' लाल स्याही के गीत' 14-गोरख पांडेय

 


       

गोरख पांडेय           

एक - वतन का गीत 

हमारे वतन की नई ज़िन्दगी हो,

नई ज़िन्दगी इक मुकम्मिल ख़ुशी हो।

नया हो गुलिस्ताँ नई बुलबुलें हों,

मुहब्बत की कोई नई रागिनी हो।

न हो कोई राजा, न हो रंक कोई,

सभी हों बराबर सभी आदमी हों।

न ही हथकड़ी कोई फ़सलों को डाले,

हमारे दिलों की न सौदागरी हो।

ज़ुबानों पे पाबन्दियाँ हों न कोई,

निगाहों में अपनी नई रोशनी हो।

न अश्कों से नम हो किसी का भी दामन,

न ही कोई भी क़ायदा हिटलरी हो।

सभी होंठ आज़ाद हों मयक़दे में,

कि गंगो-जमन जैसी दरियादिली हो।

नए फ़ैसले हों नई कोशिशें हों,

नई मंज़िलों की कशिश भी नई हो।


दो - इंकलाब का गीत 

हमारी ख्वाहिशों का नाम इन्क़लाब है !

हमारी ख्वाहिशों का सर्वनाम इन्क़लाब है !

हमारी कोशिशों का एक नाम इन्क़लाब है !

हमारा आज एकमात्र काम इन्क़लाब है !


        ख़तम हो लूट किस तरह जवाब इन्क़लाब है !

        ख़तम हो भूख किस तरह जवाब इन्कलाब है !

        ख़तम हो किस तरह सितम जवाब इन्क़लाब है !

        हमारे हर सवाल का जवाब इन्क़लाब है !

        

सभी पुरानी ताक़तों का नाश इन्क़लाब है !

सभी विनाशकारियों का नाश इन्क़लाब है !

हरेक नवीन सृष्टि का विकास इन्क़लाब है !

विनाश इन्क़लाब है, विकास इन्क़लाब है !


        सुनो कि हम दबे हुओं की आह इन्कलाब है,

        खुलो कि मुक्ति की खुली निग़ाह इन्क़लाब है,

        उठो कि हम गिरे हुओं की राह इन्क़लाब है,

        चलो, बढ़े चलो युग प्रवाह इन्क़लाब है ।


हमारी ख्वाहिशों का नाम इन्क़लाब है !

हमारी ख्वाहिशों का सर्वनाम इन्क़लाब है !

हमारी कोशिशों का एक नाम इन्क़लाब है !

हमारा आज एकमात्र काम इन्क़लाब है !


        तीन- अमीरों का कोरस 

जो हैं गरीब उनकी जरूरतें कम हैं

कम हैं जरूरतें तो मुसीबतें कम हैं

हम मिल-जुल के गाते गरीबों की महिमा

हम महज अमीरों के तो गम ही गम हैं


वे नंगे रहते हैं बड़े मजे में

वे भूखों रह लेते हैं बड़े मजे में

हमको कपड़ों पर और चाहिए कपड़े

खाते-खाते अपनी नाकों में दम है


वे कभी कभी कानून भंग करते हैं

पर भले लोग हैं, ईश्वर से डरते हैं

जिसमें श्रद्धा या निष्ठा नहीं बची है

वह पशुओं से भी नीचा और अधम है


अपनी श्रद्धा भी धर्म चलाने में है

अपनी निष्ठा तो लाभ कमाने में है

ईश्वर है तो शांति, व्यवस्था भी है

ईश्वर से कम कुछ भी विध्वंस परम है


करते हैं त्याग गरीब स्वर्ग जाएँगे

मिट्टी के तन से मुक्ति वहीं पाएँगे

हम जो अमीर हैं सुविधा के बंदी हैं

लालच से अपने बंधे हरेक कदम हैं


इतने दुख में हम जीते जैसे-तैसे

हम नहीं चाहते गरीब हों हम जैसे

लालच न करें, हिंसा पर कभी न उतरें

हिंसा करनी हो तो दंगे क्या कम हैं


जो गरीब हैं उनकी जरूरतें कम हैं

कम हैं मुसीबतें, अमन चैन हरदम है

हम मिल-जुल के गाते गरीबों की महिमा

हम महज अमीरों के तो गम ही गम हैं


चार -समय का पहिया 


समय का पहिया चले रे साथी

समय का पहिया चले

फ़ौलादी घोंड़ों की गति से आग बरफ़ में जले रे साथी

समय का पहिया चले

रात और दिन पल पल छिन

आगे बढ़ता जाय

तोड़ पुराना नये सिरे से

सब कुछ गढ़ता जाय

पर्वत पर्वत धारा फूटे लोहा मोम सा गले रे साथी

समय का पहिया चले

उठा आदमी जब जंगल से

अपना सीना ताने

रफ़्तारों को मुट्ठी में कर

पहिया लगा घुमाने

मेहनत के हाथों से

आज़ादी की सड़के ढले रे साथी

समय का पहिया चले



 पांच - खूनी पंजा 


ये जो मुल्क़ पे कहर-सा बरपा है

ये जो शहर पे आग-सा बरसा है


बोलो यह पंजा किसका है ?

यह ख़ूनी पंजा किसका है ?


पैट्रोल छिड़कता जिस्मों पर

हर जिस्म से लपटें उठवाता

हर ओर मचाता क़त्लेआम

आँसू और ख़ून में लहराता

पगड़ी उतारता हम सबकी

बूढ़ों का सहारा छिनवाता

सिन्दूर पोंछता बहुओं का

बच्चों के खिलौने लुटवाता


बोलो यह पंजा किसका है ?

यह ख़ूनी पंजा किसका है ?


सत्तर में कसा कलकत्ते पर

कुछ जवाँ उमंगों के नाते

कस गया मुल्क़ की गर्दन पर

पचहत्तर के आते आते

आसाम की गीली मिट्टी में

यह आग लगाता आया है

पंजाब के चप्पे-चप्पे पर

अब इसका फ़ौजी साया है


ये जो मुल्क़ पे कहर-सा बरपा है

ये जो शहर पे आग-सा बरसा है


बोलो यह पंजा किसका है ?

यह ख़ूनी पंजा किसका है ?


सरमाएदारी की गिरफ़्त

तानाशाही का परचम

ये इशारा जंगफ़रोशी का

तख़्ते की गोया कोई तिकड़म

यह जाल ग़रीबी का फैला

देसी मद में रूबल की अकड़

यह फ़िरकापरस्ती का निशान

भाईचारे पे पड़ा थप्पड़


ये जो मुल्क़ पे कहर-सा बरपा है

ये जो शहर पे आग-सा बरसा है


बोलो यह पंजा किसका है ?

यह ख़ूनी पंजा किसका है ?


यह पंजा नादिरशाह का है

यह पंजा हर हिटलर का है

ये जो शहर पे आग-सा बरसा है

यह पंजा हर ज़ालिम का है

ऐ लोगो ! इसे तोड़ो वरना

हर जिस्म के टुकड़े कर देगा

हर दिल के टुकड़े कर देगा

यह मुल्क के टुकड़े कर देगा|


        छ:  मोर्चे का गीत 

रोशनी और फ़ौलाद का मोर्चा

हम बनाएँगे जनवाद का मोर्चा

जिनकी बस्ती लुटी जिनकी ख़ुशियाँ लुटीं

उनकी ताक़त की ईजाद का मोर्चा

हम किसानों व मज़दूरों का मोर्चा

उगते सूरज का और चाँद का मोर्चा

कर्म से ज्ञान का, ज्ञान से मुक्ति का

मुक्ति से सबके संवाद का मोर्चा

सब लुटेरों, सभी ज़ालिमों के ख़िलाफ़

युद्ध के शंख के नाद का मोर्चा

एक दुनिया नई जो है गढ़ने चले

ऐसे सपनों की बुनियाद का मोर्चा

हम बनाएँगे जनवाद का मोर्चा

रोशनी और फ़ौलाद का मोर्चा|

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