गुरुवार, 25 मार्च 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि 15-साहिर लुधियानवी

 



साहिर लुधियानवी 

       एक - मादाम 

आप बेवजह परेशान-सी क्यों हैं मादाम?

लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे

मेरे अहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी

मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे


नूर-ए-सरमाया से है रू-ए-तमद्दुन की जिला

हम जहाँ हैं वहाँ तहज़ीब नहीं पल सकती

मुफ़लिसी हिस्स-ए-लताफ़त को मिटा देती है

भूख आदाब के साँचे में नहीं ढल सकती


लोग कहते हैं तो, लोगों पे ताज्जुब कैसा

सच तो कहते हैं कि, नादारों की इज़्ज़त कैसी ?

लोग कहते हैं - मगर आप अभी तक चुप हैं

आप भी कहिए ग़रीबो में शराफ़त कैसी ?


नेक मादाम ! बहुत जल्द वो दौर आयेगा

जब हमें ज़ीस्त  के अदवार परखने होंगे

अपनी ज़िल्लत की क़सम, आपकी अज़मत की क़सम

हमको ताज़ीम  के मे'आर  परखने होंगे |


हम ने हर दौर में तज़लील सही है लेकिन

हम ने हर दौर के चेहरे को ज़िआ बक़्शी है

हम ने हर दौर में मेहनत के सितम झेले हैं

हम ने हर दौर के हाथों को हिना बक़्शी है |


लेकिन इन तल्ख मुबाहिस से भला क्या हासिल?

लोग कहते हैं तो फिर ठीक ही कहते होँगे

मेरे एहबाब ने तहज़ीब न सीखी होगी

मेरे माहौल में इन्सान न रहते होँगे |


वजह बेरंगी-ए-गुलज़ार कहूँ या न कहूँ ?

कौन है कितना गुनहगार कहूँ या न कहूँ ?


दो - ऐ शरीफ इंसानों


खून आपना हो या पराया हो

नस्ल -ऐ-आदम का खून है आख़िर,

जंग मशरिक में हो या मगरिब में ,

अमन-ऐ-आलम का खून है आख़िर !


बम घरों पर गिरे की सरहदपर , 

रूह-ऐ-तामीर जख्म खाती है !

खेत अपने जले की औरोंके ,

जीस्त फ़ाकों से तिलमिलाती है !


टैंक आगे बढे की पीछे हटे,

कोख धरतीकी बाँझ होती है !

फतह का जश्न हो की हार का सोग,

जिंदगी मय्यतों पे रोंती है  !


जंग तो खुदही एक मसलआ है

जंग क्या मसलोंका हल देगी ?

आग और खून आज बख्शेगी

भूख और एहतयाज कल देगी !        


इसलिए ऐ शरीफ इंसानों ,

जंग टलती है तो बेहतर है !

आप और हम सभी के आँगन में ,

शमा जलती रहे तो बेहतर है  !


तीन -'जश्ने ग़ालिब'

 

इक्कीस बरस गुज़रे आज़ादी-ए-कामिल को,

तब जाके कहीं हम को ग़ालिब का ख़्याल आया ।

तुर्बत है कहाँ उसकी, मसकन था कहाँ उसका,

अब अपने सुख़न परवर ज़हनों में सवाल आया ।


सौ साल से जो तुर्बत चादर को तरसती थी,

अब उस पे अक़ीदत के फूलों की नुमाइश है ।

उर्दू के ताल्लुक से कुछ भेद नहीं खुलता,

यह जश्न, यह हंगामा, ख़िदमत है कि साज़िश है ।


जिन शहरों में गुज़री थी, ग़ालिब की नवा बरसों,

उन शहरों में अब उर्दू बे नाम-ओ-निशां ठहरी ।

आज़ादी-ए-कामिल का ऎलान हुआ जिस दिन,

मातूब जुबां ठहरी, गद्दार जुबां ठहरी ।


जिस अहद-ए-सियासत ने यह ज़िन्दा जुबां कुचली,

उस अहद-ए-सियासत को मरहूमों का ग़म क्यों है ।

ग़ालिब जिसे कहते हैं उर्दू ही का शायर था,

उर्दू पे सितम ढा कर ग़ालिब पे करम क्यों है ।


ये जश्न ये हंगामे, दिलचस्प खिलौने हैं,

कुछ लोगों की कोशिश है, कुछ लोग बहल जाएँ ।

जो वादा-ए-फ़रदा, पर अब टल नहीं सकते हैं,

मुमकिन है कि कुछ अर्सा, इस जश्न पर टल जाएँ ।


यह जश्न मुबारक हो, पर यह भी सदाकत है,

हम लोग हक़ीकत के अहसास से आरी हैं ।

गांधी हो कि ग़ालिब हो, इन्साफ़ की नज़रों में,

हम दोनों के क़ातिल हैं, दोनों के पुजारी हैं ।


     चार -गंगा तेरा पानी अमृत          


गंगा तेरा पानी अमृत झर-झर बहता जाए

युग-युग से इस देश की धरती तुझसे जीवन पाए

गंगा तेरा पानी...


दूर हिमालय से तू आई गीत सुहाने गाती

बस्ती-बस्ती पर्वत-पर्वत सुख-संदेश सुनाती

तेरी चाँदी जैसी धारा मीलों तक लहराए

गंगा तेरा पानी...


कितने सूरज उभरे-डूबे गंगा तेरे द्वारे

युगों-युगों की कथा सुनाएँ तेरे बहते धारे

तुझको छोड़ के भारत का इतिहास लिखा न जाए

गंगा तेरा पानी...


इस धरती का दुख-सुख तूने अपने बीच समोया

जब-जब देश ग़ुलाम हुआ है तेरा पानी रोया

जब-जब हम आज़ाद हुए हैं तेरे तट मुस्काए

गंगा तेरा पानी...


खेतों-खेतों तुझसे जागी धरती पर हरियाली

फ़सलें तेरा राग अलापें झूमे बाली-बाली

तेरा पानी पी कर मिट्टी सोने में ढल जाए

गंगा तेरा पानी ...


तेरे दान की दौलत ऊँचे खलिहानों में ढलती

ख़ुशियों के मेले लगते मेहनत की डाली फलती

लहक-लहक कर धूम मचाते तेरी गोद में जाए

गंगा तेरा पानी ...


            पांच  -मैं पल-दो-पल का शायर हूँ


मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।

पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥

मैं पल-दो-पल का शायर हूँ|


मुझ से पहले कितने शायर आए और आ कर चले गए,

कुछ आहें भर कर लौट गए, कुछ नग़में गा कर चले गए ।

वे भी एक पल का क़िस्सा थे, मैं भी एक पल का क़िस्सा हूँ,

कल तुम से जुदा हो जाऊंगा गो आज तुम्हारा हिस्सा हूँ ॥


मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।

पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥


कल और आएंगे नग़मों की खिलती कलियाँ चुनने वाले,

मुझसे बेहतर कहने वाले, तुमसे बेहतर सुनने वाले ।

कल कोई मुझ को याद करे, क्यों कोई मुझ को याद करे

मसरुफ़ ज़माना मेरे लिए, क्यों वक़्त अपना बरबाद करे ॥


मैं पल-दो-पल का शायर हूँ, पल-दो-पल मेरी कहानी है ।

पल-दो-पल मेरी हस्ती है, पल-दो-पल मेरी जवानी है ॥


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