शुक्रवार, 26 मार्च 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि : 16-नागार्जुन



एक 

अकाल और उसके बाद 

कई दिनों तक चूल्हा रोया, चक्की रही उदास

कई दिनों तक कानी कुतिया सोई उनके पास

कई दिनों तक लगी भीत पर छिपकलियों की गश्त

कई दिनों तक चूहों की भी हालत रही शिकस्त।


दाने आए घर के अंदर कई दिनों के बाद

धुआँ उठा आँगन से ऊपर कई दिनों के बाद

चमक उठी घर भर की आँखें कई दिनों के बाद

कौए ने खुजलाई पाँखें कई दिनों के बाद।

         दो -शासन की बंदूक 

खड़ी हो गई चाँपकर कंकालों की हूक

नभ में विपुल विराट-सी शासन की बंदूक


उस हिटलरी गुमान पर सभी रहें है थूक

जिसमें कानी हो गई शासन की बंदूक


बढ़ी बधिरता दस गुनी, बने विनोबा मूक

धन्य-धन्य वह, धन्य वह, शासन की बंदूक


सत्य स्वयं घायल हुआ, गई अहिंसा चूक

जहाँ-तहाँ दगने लगी शासन की बंदूक


जली ठूँठ पर बैठकर गई कोकिला कूक

बाल न बाँका कर सकी शासन की बंदूक |

             तीन - प्रेत का बयान 


"ओ रे प्रेत -"

कडककर बोले नरक के मालिक यमराज

-"सच - सच बतला !

कैसे मरा तू ?

भूख से , अकाल से ?

बुखार कालाजार से ?

पेचिस बदहजमी , प्लेग महामारी से ?

कैसे मरा तू , सच -सच बतला !"

खड़ खड़ खड़ खड़ हड़ हड़ हड़ हड़

काँपा कुछ हाड़ों का मानवीय ढाँचा

नचाकर लंबे चमचों - सा पंचगुरा हाथ

रूखी - पतली किट - किट आवाज़ में

प्रेत ने जवाब दिया -


" महाराज !

सच - सच कहूँगा

झूठ नहीं बोलूँगा

नागरिक हैं हम स्वाधीन भारत के

पूर्णिया जिला है , सूबा बिहार के सिवान पर

थाना धमदाहा ,बस्ती रुपउली

जाति का कायस्थ

उमर कुछ अधिक पचपन साल की

पेशा से प्राइमरी स्कूल का मास्टर था

-"किन्तु भूख या क्षुधा नाम हो जिसका

ऐसी किसी व्याधि का पता नहीं हमको

सावधान महाराज ,

नाम नहीं लीजिएगा

हमारे समक्ष फिर कभी भूख का !!"


निकल गया भाप आवेग का

तदनंतर शांत - स्तंभित स्वर में प्रेत बोला -

"जहाँ तक मेरा अपना सम्बन्ध है

सुनिए महाराज ,

तनिक भी पीर नहीं

दुःख नहीं , दुविधा नहीं

सरलतापूर्वक निकले थे प्राण

सह न सकी आँत जब पेचिश का हमला .."


सुनकर दहाड़

स्वाधीन भारतीय प्राइमरी स्कूल के

भुखमरे स्वाभिमानी सुशिक्षक प्रेत की

रह गए निरूत्तर

महामहिम नर्केश्वर |


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