शनिवार, 27 मार्च 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि :17-महादेवी वर्मा


 

 महादेवी  वर्मा 

             एक 

पंथ होने दो अपरिचित प्राण रहने दो अकेला


घेर ले छाया अमा बन

आज कंजल-अश्रुओं में रिमझिमा ले यह घिरा घन


और होंगे नयन सूखे

तिल बुझे औ’ पलक रूखे

आर्द्र चितवन में यहां

शत विद्युतों में दीप खेला


अन्य होंगे चरण हारे

और हैं जो लौटते, दे शूल को संकल्प सारे


दुखव्रती निर्माण उन्मद

यह अमरता नापते पद

बांध देंगे अंक-संसृति

से तिमिर में स्वर्ण बेला


दूसरी होगी कहानी

शून्य में जिसके मिटे स्वर, धूलि में खोई निशानी


आज जिस पर प्रलय विस्मित

मैं लगाती चल रही नित

मोतियों की हाट औ’

चिनगारियों का एक मेला


हास का मधु-दूत भेजो

रोष की भ्रू-भंगिमा पतझार को चाहे सहे जो


ले मिलेगा उर अचंचल

वेदना-जल, स्वप्न-शतदल

जान लो वह मिलन एकाकी

विरह में है दुकेला!


               दो 

मैं नीर भरी दु:ख की बदली!


स्पंदन में चिर निस्पंद बसा,

क्रन्दन में आहत विश्व हंसा,

नयनों में दीपक से जलते,

पलकों में निर्झरिणी मचली!


मेरा पग-पग संगीत भरा,

श्वासों में स्वप्न पराग झरा,

नभ के नव रंग बुनते दुकूल,

छाया में मलय बयार पली,


मैं क्षितिज भॄकुटि पर घिर धूमिल,

चिंता का भार बनी अविरल,

रज-कण पर जल-कण हो बरसी,

नव जीवन अंकुर बन निकली!


पथ को न मलिन करता आना,

पद चिन्ह न दे जाता जाना,

सुधि मेरे आगम की जग में,

सुख की सिहरन बन अंत खिली!


विस्तृत नभ का कोई कोना,

मेरा न कभी अपना होना,

परिचय इतना इतिहास यही

उमड़ी कल थी मिट आज चली!

जाग तुझको दूर जाना!


                      तीन 

चिर सजग आँखें उनींदी आज कैसा व्यस्त बाना!

जाग तुझको दूर जाना!


अचल हिमगिरि के हॄदय में आज चाहे कम्प हो ले!

या प्रलय के आँसुओं में मौन अलसित व्योम रो ले;

आज पी आलोक को ड़ोले तिमिर की घोर छाया

जाग या विद्युत शिखाओं में निठुर तूफान बोले!

पर तुझे है नाश पथ पर चिन्ह अपने छोड़ आना!

जाग तुझको दूर जाना!


बाँध लेंगे क्या तुझे यह मोम के बंधन सजीले?

पंथ की बाधा बनेंगे तितलियों के पर रंगीले?

विश्व का क्रंदन भुला देगी मधुप की मधुर गुनगुन,

क्या डुबो देंगे तुझे यह फूल दे दल ओस गीले?

तू न अपनी छाँह को अपने लिये कारा बनाना!

जाग तुझको दूर जाना!


वज्र का उर एक छोटे अश्रु कण में धो गलाया,

दे किसे जीवन-सुधा दो घँट मदिरा माँग लाया!

सो गई आँधी मलय की बात का उपधान ले क्या?

विश्व का अभिशाप क्या अब नींद बनकर पास आया?

अमरता सुत चाहता क्यों मृत्यु को उर में बसाना?

जाग तुझको दूर जाना!


कह न ठंढी साँस में अब भूल वह जलती कहानी,

आग हो उर में तभी दृग में सजेगा आज पानी;

हार भी तेरी बनेगी माननी जय की पताका,

राख क्षणिक पतंग की है अमर दीपक की निशानी!

है तुझे अंगार-शय्या पर मृदुल कलियां बिछाना!

जाग तुझको दूर जाना!


          चार 

जो तुम आ जाते एक बार


कितनी करूणा कितने संदेश

पथ में बिछ जाते बन पराग

गाता प्राणों का तार तार

अनुराग भरा उन्माद राग


आँसू लेते वे पथ पखार

जो तुम आ जाते एक बार


हँस उठते पल में आर्द्र नयन

धुल जाता होठों से विषाद

छा जाता जीवन में बसंत

लुट जाता चिर संचित विराग


आँखें देतीं सर्वस्व वार

जो तुम आ जाते एक बार |


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