मंगलवार, 30 मार्च 2021

जनवादी गीत संग्रह-' लाल स्याही के गीत' 18-जनकवि शील के गीत

 



     एक 

मेघ न आए।

सूखे खेत किसानिन सूखे,

सूखे ताल-तलैयाँ,

भुइयाँ पर की कुइयाँ सूखी,

तलफ़े ढोर-चिरैयाँ।

आसमान में सूरज धधके,

दुर्दिन झाँक रहे।

बीज फोड़कर निकले अंकुर

ऊपर ताक रहे।


मेघ न आए।

सावन बीता, भादों बीते,

प्यासे घट रीते के रीते,

मारी गई फसल बरखा बिन,

महँगे हुए पिरीते।

धन के लोभी दाँत निकाले,

सपने गाँठ रहे।

बीज फोड़कर निकले अंकुर

ऊपर ताक रहे।


मेघ न आए।

आये भी तो धुपहे बादल,

धूल-भरे चितकबरे बादल,

पछुवा के हुलकाए बादल,

राजनीति पर छाए बादल,

पूर्वोत्तर के पचन झकोरे,

धरती माप रहे।

बीज फोड़कर निकले अंकुर

ऊपर ताक रहे।

मेघ न आए।

 दो 

बैल 

तक-तक तक-तक बैल।

हुई ठीक दुपहर है प्यारे,

मृग-मरीचिका चली किनारे।

खेत पड़ा है पैर पसारे,

ओ मौके के मीत हमारे।


तुम पर बड़ा भरोसा मुझको,

माँ ने पाला-पोसा तुमको।

मेहनत के दिन यार न झिझको,

हिम्मत मत हारो मत ठिठको।


तय कर ली है हमने-तुमने, सात हराई गैल।

तक-तक तक-तक बैल,तक-तक तक-तक बैल।।


आती होगी घर की रानी,

लिए तुम्हें चोकर की सानी।

मुझको लपसी-ठंडा पानी,

पगी प्रेम में ठगी बिकानी।


फर-फर उड़ती चूनर काली,

आती होगी बनी मराली।

रंजे नयन अधरों में लाली,

अंग-अंग में भरे वहाली।


मृदु मुस्कान चपल चितवन से ठगती छलिया छैल।

तक-तक तक-तक बैल, तक-तक तक-तक बैल।।


देखो आंतर करो न साथी,

विचक-विचक पग धरो न साथी।

मेरे साथी जग के साथी,

मन के साथी धन के साथी।


बीघा डेढ़ हो गया इनका,

पूरा काम हो गया उनका।

मुझको रोटी तुमको तिनका,

है आधार यही जीवन का।


चलो पेट भर लें चल करके दुखिया बैल टुटैल।

तक-तक तक-तक बैल, तक-तक तक-तक बैल।।

  तीन 

    आदमी का गीत 

देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल

नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे

सौ-सौ स्वर्ग उतर आएँगे,

सूरज सोना बरसाएँगे,

दूध-पूत के लिए पहिनकर

जीवन की जयमाल,

रोज़ त्यौहार मनाएँगे,

नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे ।


देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।

नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे ।।


सुख सपनों के सुर गूँजेंगे,

मानव की मेहनत पूजेंगे

नई चेतना, नए विचारों की

हम लिए मशाल,

समय को राह दिखाएँगे,

नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे ।


देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।

नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे ।।


एक करेंगे मनुष्यता को,

सींचेंगे ममता-समता को,

नई पौध के लिए, बदल

देंगे तारों की चाल,

नया भूगोल बनाएँगे,

नया संसार बसाएँगे, नया इन्सान बनाएँगे।


देश हमारा धरती अपनी, हम धरती के लाल।

नया संसार बसाँगे, नया इन्सान बनाएँगे ।।

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