मंगलवार, 30 मार्च 2021

हमारे प्रतिनिधि कवि 19-अकबर इलाहाबादी


 

अकबर इलाहाबादी 

              एक 

हंगामा है क्यूँ बरपा, थोड़ी सी जो पी ली है

डाका तो नहीं डाला, चोरी तो नहीं की है |


ना-तजुर्बाकारी से, वाइज़ की ये बातें हैं

इस रंग को क्या जाने, पूछो तो कभी पी है |


उस मय से नहीं मतलब, दिल जिस से है बेगाना

मक़सूद है उस मय से, दिल ही में जो खिंचती है |


वां दिल में कि दो सदमे,यां जी में कि सब सह लो

उन का भी अजब दिल है, मेरा भी अजब जी है |


हर ज़र्रा चमकता है, अनवर-ए-इलाही से

हर साँस ये कहती है, कि हम हैं तो ख़ुदा भी है |


सूरज में लगे धब्बा, फ़ितरत के करिश्मे हैं

बुत हम को कहें काफ़िर, अल्लाह की मर्ज़ी है |

                

                               दो 


दुनिया में हूँ दुनिया का तलबगार नहीं हूँ |

बाज़ार से गुज़रा हूँ, ख़रीददार नहीं हूँ |


ज़िन्दा हूँ मगर ज़ीस्त  की लज़्ज़त नहीं बाक़ी

हर चंद कि हूँ होश में, होशियार नहीं हूँ |


इस ख़ाना-ए-हस्त से गुज़र जाऊँगा बेलौस

साया हूँ फ़क़्त, नक़्श बेदीवार नहीं हूँ |


अफ़सुर्दा हूँ इबारत से, दवा की नहीं हाजित

गम़ का मुझे ये जो’फ़ है, बीमार नहीं हूँ |


वो गुल हूँ ख़िज़ां ने जिसे बरबाद किया है

उलझूँ किसी दामन से मैं वो ख़ार नहीं हूँ |


यारब मुझे महफ़ूज़ रख उस बुत के सितम से

मैं उस की इनायत का तलबगार नहीं हूँ |


अफ़सुर्दगी-ओ-जौफ़ की कुछ हद नहीं “अकबर”

क़ाफ़िर के मुक़ाबिल में भी दींदार नहीं हूँ |


तीन 

उन्हें शौक़-ए-इबादत भी है और गाने की आदत भी

निकलती हैं दुआऐं उनके मुंह से ठुमरियाँ होकर |


तअल्लुक़ आशिक़-ओ-माशूक़ का तो लुत्फ़ रखता था

मज़े अब वो कहाँ बाक़ी रहे बीबी मियाँ होकर |


न थी मुतलक़ तव्क़्क़ो बिल बनाकर पेश कर दोगे

मेरी जाँ लुट गया मैं तो तुम्हारा मेहमाँ होकर |


हक़ीक़त में मैं एक बुलबुल हूँ मगर चारे की ख़्वाहिश में

बना हूँ मिमबर-ए-कोंसिल यहाँ मिट्ठू मियाँ होकर |


निकाला करती है घर से ये कहकर तू तो मजनूं है

सता रक्खा है मुझको सास ने लैला की माँ होकर |

 चार 

कहाँ ले जाऊँ दिल दोनों जहाँ में इसकी मुश्क़िल है ।

यहाँ परियों का मजमा है, वहाँ हूरों की महफ़िल है ।


इलाही कैसी-कैसी सूरतें तूने बनाई हैं,

हर सूरत कलेजे से लगा लेने के क़ाबिल है।


ये दिल लेते ही शीशे की तरह पत्थर पे दे मारा,

मैं कहता रह गया ज़ालिम मेरा दिल है, मेरा दिल है ।


जो देखा अक्स आईने में अपना बोले झुँझलाकर,

अरे तू कौन है, हट सामने से क्यों मुक़ाबिल है ।


हज़ारों दिल मसल कर पाँवों से झुँझला के फ़रमाया,

लो पहचानो तुम्हारा इन दिलों में कौन सा दिल है ।


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